सामाजिक परिवर्तन सिर्फ कानून से नहीं ….. डॉ स्वर्ण जीत सिंह

कानून कोई भी परिवर्तन , खासतौर सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए मददगार तो हो सकता है , लेकिन सिर्फ कानून परिवर्तन ला नहीं सकता , बदलाव ला नहीं सकते।
सामाजिक कलंक का डर , सामाजिक दबाव, सामाजिक शर्म का डर , सामाजिक क्रांति लाने में , सामाजिक परिवर्तन लाने में , एक स्थाई टिकाऊ बदलाव लाने में बड़े मददगार हथियार हैं।
बशर्ते इन हथियारों की मदद बड़ी नम्रता और दृढ़ता के साथ ली जाए और इनका प्रयोग करते समय सकारात्मक ऊर्जा , प्रयोग करने वालों में बनी रहे और वे झोली फैलाकर नम्रता दृढ़ता को आधार बनाकर कुछ करने की ठान लें । तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि सामाजिक परिवर्तन में सफलता हासिल ना हो।
आज समाज की स्थिति यह हो गई है कि जिन में हीनता बोध होना चाहिए( ऐसे संख्या में ज्यादा नहीं होते ) , वे खुलेआम सीना तान कर घूम रहे हैं ।और कहते फिरते हैं , अब तो भाई ऐसे ही होता है । अरे भाई सभी ऐसा कर रहे हैं , तो हम क्या गलत कर रहे हैं ? हीनता बोध का कहीं लेश मात्र भी नाम ही नहीं है अपनी बातों के लिए उनके मन में ।
और ये , सीधे-साधे आम जीवन बिताने वाले लोगों में , उनके परिवारों में , मेहनत करने वालों में , शान्ति से रहने वाले समाज के लोगों में हीनता बोध पैदा कर रहे हैं । जैसे कि पता नहीं समाज का यह हिस्सा कितना बड़ा अपराधी है , जो उन चंद लोगों की तरह नहीं चल रहा ,उनकी तरह नहीं सोच रहा।
वाह भाई वाह , तथाकथित नेतृत्व देने वालों किसी संगठन को । कहीं कभी तो विचारो कि हम क्या कर रहे हैं ?
विचारना केवल उन्हें ही नहीं है , समाज के उस बहु संख्यक हिस्से को भी विचारना है जिन्होंने ऐसे लोगों के विरुद्ध मौन धारण कर लिया है। हम भी उतने ही दोषी हैं।
डा स्वर्ण जीत सिंह
बाल रोग विशेषज्ञ
लिंक रोड सहारनपुर
कैसे कर सकते हैं हम ऐसे
बहुमत के नाम पर या फिर कुछ प्रबंधकों के नाम पर हम होली , दिवाली पर संगठन के स्तर पर जो करते हैं ?
वह कैसे कर सकते हैं ?
क्यों करते हैं ?
क्यों करना चाहिए ?
क्या वह ठीक है?
चाहे बहुमत को पसंद हो?
और फिर इमानदारी से यह कौन जानना चाह रहा है?
कि वास्तव में बहुमत ऐसा चाहता है या नहीं?
हमें अंदर झांक कर सोचना चाहिए ऐसे बहुमत से क्या फायदा? क्या प्रबंधकों का यही दायित्व है कि बहुमत के नाम पर________?