आपको बता दें, दिल्ली में कालिंदकुज का हाल बेहद खराब है लेकिन इसके बावजूद लोग यहां लोक आस्था का महापर्व मानने को मजबूर है, ठीक छठ आने के बाद राजनीतिक अपने चरम पर होती है.
नदी में प्रदूषण को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे को कोसते नजर आते हैं
हर वर्ष आस्था का महापर्व छठ पर राजनीतिक पार्टियों को यमुना की दुर्दशा की याद आती है। नदी में प्रदूषण को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे को कोसते नजर आते हैं। कई दिनों तक आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है। इसका मुख्य कारण पूर्वांचल समाज को साथ जोड़कर राजनीतिक लाभ उठाना है, और कुछ नहीं,यही कारण है कि छठ पूजा समाप्त होते ही इसे लेकर राजनीतिक बयानबाजी भी थम जाती है। बताते चलें,छठ पूजा में नदी, तालाब या अन्य जल स्त्रोत में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है।
दिल्ली में लगभग 22 किलोमीटर यमुना का प्रवाह क्षेत्र है, वहां इसके पानी में उतरकर छठ पूजा करने पर प्रतिबंध है
अन्य शहरों में नदी के तट पर अर्घ्य देने वालों की भीड़ लगती है, लेकिन जिस दिल्ली में लगभग 22 किलोमीटर यमुना का प्रवाह क्षेत्र है, वहां इसके पानी में उतरकर छठ पूजा करने पर प्रतिबंध है। कारण प्रदूषित पानी है, इसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है, अस्थायी घाट पर लोग छठ पूजा करने को मजबूर यमुना किनारे और शहर में अन्य स्थानों पर बने अस्थायी घाट पर लोग छठ पूजा करने को मजबूर हैं। कई लोग इस प्रतिबंध के बावजूद दूषित जल में उतरकर पूजा करते हैं। नहाय खाय के दिन भी छठ व्रत करने वाले कालिंदीकुंज में यमुना के जहरीले झाग वाले पानी में स्नान कर पूजा अर्चना करते देखे जाते हैं, जबकि सरकार कुछ भी कर पाने में सक्षम नहीं है, सिर्फ राजनीति का अखाड़ा के सिवाय और वोट बैंक की राजनीतिक!
रिपोर्ट:- अमित कुमार सिन्हा