प्रदेश में अब आपदा के दौरान राहत बचाव कार्यों और सरकारी योजनाओं में ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए लगभग सभी तैयारियां भी पूरी की जा चुकी हैं। स्वामित्व योजना के अंतर्गत डिजिटल इंडिया लैंड रिकार्ड माडर्नाइजेशन का कार्य में भी ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है।
प्रदेश में तीन वर्ष पहले यानी 2018 में केंद्र के सहयोग से ड्रोन एप्लीकेशन एवं अनुसंधान केंद्र (डार्क) की स्थापना की गई है। इसका उद्देश्य ड्रोन के लिए स्टेट आफ आर्ट ड्रोन उपयोग एवं अनुसंधान स्थापित करना, ड्रोन संचालकों के लिए उच्च तकनीकी युक्त प्रशिक्षण व्यवस्था, एवं वन सर्वे, पुलिस विभाग द्वारा आपदा राहत कार्यक्रमों में उपयोग की क्षमता विकसित करने के लिए तकनीकी सुविधा उपलब्ध कराना है।
इस अनुसंधान केंद्र में अंतर्गत डार्क ड्रोन, ड्रोन फ्लाइंग परमिशन एप, डार्क मैपर, व डार्क एप फार डीजेआइ ड्रोन आदि बनाए गए हैं। डीजेआइ ड्रोन का इस्तेमाल ही सर्वे के लिए किया जाएगा। दरअसल, डीजेआइ तकनीक में फ्लाइट डाटा उनके सर्वर पर चला जाता है। इसके अलावा यह कार्यक्रमों की लाइव स्ट्रीमिंग करने में भी सक्षम है। अभी डार्क की योजना राज्य आपदा प्रबंधन में ड्रोन का इस्तेमाल करना है।
इसके साथ ही ऐसे नए माल व मानव वाहक ड्रोन भी बनाए जाने प्रस्तावित हैं जो पांच से दस किमी की रेंज में 20 से 25 मिनट तक 100 किलो के वजन को नियंत्रित कर सकें। इसके अलावा वन्यजीव प्रबंधन, वनाग्नि प्रबंधन एवं वन नियोजन के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल किया जाना प्रस्तावित है। जमरानी बांध परियोजना में भी प्रभावित गांवों का सर्वेक्षण ड्रोन तकनीक से ही किया जाना है। इसके अलावा भारत नेट परियोजना के तहत आप्टिकल फाइबर बिछाने के लिए सर्वे भी ड्रोन तकनीक के जरिये किए जाएगा।
सचिव सूचना प्रौद्योगिकी आरके सुधांशु का कहना है कि आपदा राहत कार्यों और सर्वे में ड्रोन अहम भूमिका निभा सकते हैं। इस दिशा में लगातार कार्य किया जा रहा है।