उत्तराखंड राज्य में नए नए प्रयोग होते रहते है। छोटा राज्य है तो विकास में अग्रणी बनने की प्रतिस्पर्धा में भी आगे दिखना प्राकृतिक है। राज्य में अभी इंवेस्टर सम्मिट का आयोजन किया गया और न्योत दिया देश विदेश के उद्योग जगत को। आप आइए और हमारे शान्त प्रदेश का भविष्य उज्ज्वल कीजिए। राज्य आपको सारी सुविधाएं प्रदान करेगा बस आप एम ओ यू साइन कीजिए हम आपको इन्वेस्टर फ्रेंडली वातावरण देगे आप आइए, उद्योग लगाए, खूब पैसा कमाएं और उत्तराखंड के बेरोजगार नौजवानों को रोजगार दीजिए। उत्तराखंड वासियों को और सरकार को दो बात समझनी होगी की उद्योग जगत मुनाफे से चलता है उन्हें आपके विकास से कोई सरोकार नहीं होता जिस तरह से भारत में विदेशी फंड का निवेश आज चरम पर है परंतु यह चीन में दिनों दिन घटता जा रहा है। क्योंकि वहां से मुनाफा काम मिल रहा है। उद्योग संसाधनों का दोहन कर मुद्रा कमाते हैं यही कॉरपोरेट जगत का सिद्धांत होता है। उत्तराखंड वासी पहले ही बाहरी राज्यों से आए हुए देशवासियों से त्रस्त हैं और आंदोलन के लिए बाध्य हैं कि सरकार इन बाहर वालों से हमे निजात दे। हमारा मूल निवास का 1950 आधार हो और सब जंगल, जल और ज़मीन पर हमारा अधिकार हो तो यही बात तो कश्मीर की जनता भी कहती हैं और कश्मीर की जंगल, जल और ज़मीन का अधिकार धारा 370 से सुरक्षित था जो अब भारत सरकार ने खत्म कर दिया है। तो क्या हम उत्तराखंड में भी इसी प्रकार की व्यवस्था लागू करना चाहते हैं तो फिर इन्वेस्टर सम्मिट का क्या अर्थ है। दूसरी मांग उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर लैंड जिहाद, लव जिहाद एवं धर्मांतरण हुआ बताते है और उत्तराखंड की संस्कृति और डेमोग्राफी को बचाने के लिए हिमाचल की तरह से सख्त भू कानून बनाने की अति आवश्यकता बताते है ताकि बाहरी राज्यों से आए हमारे देशवासी उत्तराखंड में जमीन न ले सकें। अब उत्तराखंड सरकार को जनता की भावनाओं के अनुरूप राज्य में यह कानून बनाना है कि बाहरी राज्य का हमारा देशवासी उत्तराखंड में हिमाचल की तरह कोई ज़मीन ना ख़रीद सके और न बस सके बल्कि बाहरी उद्योग जगत, उद्योग लगाए और खूब पैसा कमाएं मगर आम हिन्दुस्तानी उत्तराखंड में अपना छोटा से आशियाना, नौकरी और कारोबार भी न कर सके क्योंकि इन बाहरी तत्व ने उत्तराखंड की असिमता, जल, जंगल और ज़मीन सब कुछ हड़प लिया है और हमारे उत्तराखंड वासी पहाड़ों से लाखो की तादाद में पलायन कर भारत के तमाम शहरों में घर बनाकर, नौकरी कर और व्यवसाय कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। अगर हमारे उत्तराखंड वासियों को भारत के दूसरे राज्यों में अध्यासन का अधिकार हमारा संविधान देता है तो फिर बाहरी और अंदरूनी क्या है बाहरी उद्योग जगत का हमारे राज्य में स्वागत है मगर आम भारतीय को यहां बसने का कोई अधिकार नहीं है यह भू कानून और मूल निवासी क़ानून सब इंटर स्टेट परमिट की तरह के कानून ही साबित होंगे जो राजनीतिक महत्वकांशा तो पूरी कर सकते हैं मगर देश को एक सूत्र में पिरोने में शायद कारगार न हो और उत्तराखंड में विकास की दर शायद कश्मीर से कुछ भिन्न न हो। उत्तराखंड वासियों और सरकार को इस पर विचार करने की अवश्यकता है।
आपका,
खुर्शीद अहमद,
37, प्रीति एनक्लेव माजरा देहरादून।