Uttrakhand:- गाजियाबाद से 230 किलोमीटर पैदल चल काशीपुर पहुंची कोटाबाग की अनीता- पूछने पर आपबीती सुनाई तो छलक पड़े आंसू…

देश में जारी लॉकडाउन की सबसे बड़ी मार प्रवासी मजदूरों पर पड़ी है जो अपने घरों से दूर विभिन्न राज्यों में फंसे हैं. मजदूर किसी भी हाल में अपने घरों को लौटना चाहते हैं जिसके चलते कोई साइकिल पर, कोई ठेले पर तो कोई पैदल ही अपने घर की ओर निकल पड़ा है. कहीं चलते-चलते किसी मजदूर की मौत हो गई तो कहीं किसी महिला ने सड़क पर ही बच्चे को जन्म दिया. 

मजबूरी इंसान को बुरे से बुरे हालात में धकेल देती है और फिर इस लॉकडाउन ने तो लोगों को बहुत मजबूर किया है नौकरी, घर और खाने का संकट सबसे बड़ी मजबूरी पैदा करता है यही वजह है कि हजारों लोग पैदल ही आज अपने घर को निकल रहे हैं..

ऐसा ही एक मामला फिर से सामने आया है जहां नैनीताल के कोटाबाग की रहने वाली अनीता गाजियाबाद से 230 किलोमीटर पैदल चलकर काशीपुर पहुंची जहां पुलिसकर्मियों ने अनीता से पूछा तो उसकी आंखों में आंसू छलक पड़े और उसने अपनी आपबीती बताई।

दरअसल अनीता गाजियाबाद में नौकरी करती थी लॉक डाउन के चलते कंपनी में काम बंद हो गया और धीरे धीरे अपने पास रखी हुई बचत रकम खाने-पीने में खर्च हो गई, घर जाने के लिए भी बहुत प्रयास किए लेकिन कोई समाधान नहीं निकला तो

मजबूरी में अनीता ने पैदल ही घर जाने की ठान ली अनीता रविवार की सुबह गाजियाबाद कमरे से निकली और 230 किलोमीटर दूर काशीपुर आकर जब उसकी कोरोना की जांच हुई वह स्वस्थ निकली तो इस दौरान वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने अनीता से उसके बारे में पूछा तो उसके आंखों से आंसू छलक आए ..

उसने अपनी मजबूरी का एक-एक दर्द बयां किया उसने बताया कि रास्ते में उसे कुमाऊ के लोग कई जगह मिले जिन्होंने उनकी मदद की खाना दिया और इसी तरह आगे बढ़ती रहे,

मंगलवार दोपहर 12:00 बजे काशीपुर की सूर्या चौकी पर पुलिसकर्मियों ने जब अनीता का दर्द सुना तो उन्होंने अनीता को खाना मंगा कर खाना खिलाया और नैनीताल जाने वाली बस में अनीता को बैठाकर उसके उसे घर तक पहुंचाने का काम किया।

अनीता ने बताया कि उसने 2 सप्ताह पहले ही पास के लिए आवेदन किया था लेकिन कोई सूचना नहीं मिली नहीं जानकारी दी गई जिसके बाद उसका धैर्य टूटने लगा जहां वह रहती थी वहां दुकानदार ने भी राशन उधार में देना बंद कर दिया और मकान मालिक ने भी कमरा खाली करने को कहा तो मजबूरी में अनीता के पास कोई उपाय नहीं था और वह पैदल ही गाजियाबाद से निकल पड़ी।

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