खामोश सा अफसाना पानी पे लिखा होगा………………
(काज़ी अमजद अली….✍️✍️)
मुज़फ्फरनगर/उत्तरप्रदेश
मुज़फ्फरनगर:—कुदरत की मार या सरकारी नीतियों का दोष। वक्त ऐसे बदलेगा ऐसा तो भाग्य विधाता ने भी न सोचा होगा। पढ लिखकर डिग्रियां हासिल कर आदर्श रोजगार से जुडे युवकों को हालात ने अर्श से फर्श पर ला पटका है।
लॉकडाउन के कारण बन्द हो गये उद्योग आदि के चलते बेरोजगार हो चुके पढे लिखे युवक मजबूर होकर मनरेगा मजदूर बनकर कडा परिश्रम करने को मजबूर हैं।
मुज़फ्फरनगर के मोरना ब्लॉक क्षेत्र के ग्राम वजीराबाद में तालाब खुदाई का कार्य मनरेगा मजदूरों द्वारा कराया जा रहा है।
हाथ में फावडा लिये मिट्टी की खुदाई कर रहे मजदूर अनुज कुमार ने बताया कि वह एमबीए डिग्रीधारक है और वह हरिद्वार स्थित हीरो कम्पनी में कार्य करता है। लॉकडाउन के कारण कम्पनी बन्द है। रोजगार न होने से घर में पैसे की काफी किल्लत हो गयी है। मजबूर होकर उसने मजदूरी शुरू कर दी है।
जहां काफी मेहनत के बाद 200 रूपये प्रतिदिन मिलते हैं। मजदूरी के पैसे काफी कम हैं फिर भी परिवार के खाने का खर्च चल जायेगा। अन्य मजदूर अमित कुमार व प्रभात ने बताया कि वह विभिन्न स्थानों पर कार्य कर 15 से 25 हजार रूपये प्रतिमाह कमाते थे किन्तु परिस्थितियों के आगे विवश होकर उन्हें मजदूरी करनी पड रही है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र में काफी संख्या में बेरोजगार हुए पढे लिखे युवक कठिन परिश्रम वाले कार्य कर रहे हैं।
घटती आमदनी से परेशान इन मजदूरों ने बताया कि वह इतने कम पैसों में किस प्रकार परिवार का खर्च चला पायेंगे। वहीं मनरेगा ठेकेदार के अनुसार पढे लिखे मजदूर अधिक परिश्रम नहीं कर पाते हैं। इसलिए उनसे कार्य शीघ्र सम्पन्न नहीं हो पाता है।
वातानुकूलित कार्यालयों में बैठकर कागजी कार्य करने वाले हाथ आज तेज धूप में गन्ने की निराई, गुडाई का कार्य कर रहे हैं। ईख की धारदार पत्तियों से छिले हाथों को दिखाते हुए मजदूरों को नाम व परिचय बताते हुए भी शर्म महसूस कर रहे हैं।
नाजुक हो चुके हाथांे से जहां मशक्कत का कार्य ठीक से नहीं हो पा रहा है। वहीं कार्य कराने वाले व्यक्ति ठीक से कार्य न होने पर नाखुश नजर आते हैं। आगे भविष्य में क्या इन हाथों के लिए लिखा है, वह स्वयं भी नहीं जानते हैं।
मशक्कत से भाग्य की लकीरें बदलेगी या बदलेगे हालात, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। किन्तु पढे लिखकर बेरोजगार हुवे व्यक्तियों के लिए जिन्दगी दिन ब दिन मुश्किल होती जा रही है।