समाजवादी पार्टी में गुटबाजी, अखिलेश के सामने भी रही कायम…

रिपोर्ट-रविश अहमद

सहारनपुर। समाजवादी पार्टी सहारनपुर में सब कुछ कभी भी ठीक नहीं रहता है बीते कल राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के कार्यक्रम में एक बार फिर गुटबाज़ी अलग ही नज़र अाई। स्टेज पर काफी संख्या में सीटें लगाई गई थी जिन पर चुनिंदा नेताओं के बैठने की व्यवस्था की गई थी जबकि नेताओं की बड़ी तादाद स्टेज से महरूम ही रह गई। विशेषतः इस दौरान कई बड़े और वरिष्ठ मुस्लिम नेता मंच से दूर रहे या दूर रखे गए यह भी अपने आप में एक सवाल है।
दरअसल सहारनपुर में समस्या अन्य जगहों की अपेक्षा कुछ अलग ही है यहां कार्यकर्ताओं से ज़्यादा तादाद नेताओं की है। यदि सहारनपुर में बूथ लेवल कार्यकर्ता ढूंढने के लिए निकलें तो कार्यकर्ता की जगह समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता ही हाथ आते हैं दूसरे यहां की गुटबाज़ी किसी से छिपी नहीं बल्कि सार्वजनिक रूप से दिखाई पड़ती है।

जिलाध्यक्ष समाजवादियों के लिए केवल एक पदाधिकारी माना जाता है पार्टी का जनपद का मुखिया नहीं। यहां हर कोई वरिष्ठतम दिखाई पड़ता है जिसके चलते पार्टी का डेकोरम भी अक्सर टूटा बिखरा ही रहता है। कुल मिलाकर हर किसी की अपनी अपनी राजनीतिक बिसात अलग है जिसमें विपक्षी दलों से लड़ाई कम पार्टी के दूसरे नेताओं से खींचतान ज़्यादा नज़र आती है।

अखिलेश यादव के कार्यक्रम में भी कई ऐसे नेता रहे जिनके नाम भी नहीं लिया गया जबकि सपा में उनकी मेहनत को नकारा नहीं जा सकता।

अब सवाल यह पैदा होता है कि इन परिस्थितियों में क्या राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही सब कुछ व्यवस्थित करना होगा या प्रदेश अध्यक्ष को आकर अलग अलग सबकी जिम्मेदारियां सौंपनी पड़ेंगी जिसका जवाब शायद हां में है कि पार्टी हाईकमान को सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से पार्टी प्रबंधन करना होगा।
कुल मिलाकर अगर कहा जाए कि सहारनपुर में पार्टी का कैडर मौजूद ही नहीं है बल्कि अलग अलग नेताओं के समर्थक हैं तो यह कतई गलत नहीं होगा तब ऐसे में पार्टी की नैया 7 विधानसभा सीटों वाले जनपद में कैसे पार लगेगी यह समझना नामुमकिन ही है।
दरअसल मामला सहारनपुर की राजनीति में विशेषतः समाजवादी पार्टी में बेहद पेचीदा रहा है यहां के कई बड़े नेता सपा के पुराने दिग्गज और नेता जी मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी रह चुके हैं और यह इत्तेफाक ही है कि ऐसे तमाम दिग्गजों की आपस में कभी बनी नहीं। उनके वारिसान चाहते हैं कि उनके बड़ों द्वारा की गई मेहनत और उनके रुतबे के बराबर उन्हें भी पार्टी में सम्मान मिले लिहाज़ा विरासत के नाम पर बड़ों के मतभेद अब उनके मनभेद में बदल चुका है। दूसरी तरफ ग्राउंड ज़ीरो से पार्टी में मेहनत कर आगे बढ़ने वाले लोग राजनीतिक विरासत वाले लोगों के आगे रहने के कारण हमेशा पिछड़े रहते हुए अब मेहनत करना लगभग छोड़ चुके हैं और वो भी चाहते हैं कि उन्हें बड़ा सम्मान मिले। यह पार्टी हाईकमान का फर्ज़ है कि इन मतभेदों को वह मैनेज करे अथवा पार्टी में वरिष्ठता के आधार पर ज़िम्मेदारियां सौंपे क्योंकि शर्म लिहाज के चक्कर में पार्टी लगातार कार्यकर्ताओं के नजरिए से देखने पर कमज़ोर होती दिखाई पड़ती है।
यही वो कारण है जिसके चलते बहुत सारे वरिष्ठ और समर्पित कार्यकर्ता खुद भी मंच से दूर ही रहे और अगर यही हालात बरकरार रहे तो आने वाले समय में जब चुनाव हो रहे होंगे तो यहां समाजवादियों में चुनाव की जगह टांग खिंचाई वाला घमासान ही नज़र आएगा।

Share
Now