MP के बाद राजस्थान सरकार भी लगी दावं पर- कांग्रेस ने नहीं सीखा सबक- तो-छत्तीसगढ़ और पंजाब में भी झेलने पड़ सकते हैं ऐसे हालात…

  • सत्ता के दंगल का अहम सवाल यह नहीं कि कौन जीतेगा
  • बल्कि यहां सवाल यह है कि सबसे बड़ी हार किसकी होगी

राजस्थान में चल रहे सत्ता के दंगल का सबसे अहम सवाल यह नहीं है कि इसमें कौन जीतेगा। बल्कि यह है कि सबसे बड़ी हार किसकी होगी। उत्तर साफ है: इस दंगल में अंततः कुर्सी किसी के हाथ भी लगे, लेकिन लोकतंत्र हारेगा, सार्वजनिक जीवन की मर्यादा और क्षीण होगी, राजनीति की छवि और धूमिल होगी।

एक महामारी के बीचों बीच प्रदेश के दो शीर्ष नेताओं को जनता की नहीं, सिर्फ अपनी कुर्सी, अपने अहम, और स्वार्थ की चिंता है, यह सच सड़क पर उतर आया है। राजनीति सिर्फ सत्तायोग ही नहीं सत्ताभोग तक सिमट गई है।

आखिरकार वही हुआ जिसका अंदेशा था।

पार्टी के युवा तुर्क कहे जाने वाले सचिन पायलट को कांग्रेस ने उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया। उनके समर्थक मंत्रियों को भी मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया। सचिन पायलट क्या रास्ता अपनाएगें, यह वक्त बताएगा। पर इसने साबित कर दिया है कि पार्टी में सब ठीक नहीं है।

सत्ता में रहने के बावजूद छत्तीसगढ़ में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है

मध्य प्रदेश में सत्ता गंवाने के बाद भी पार्टी गलतियों को दोहरा रही है। पहले मध्य प्रदेश और अब राजस्थान में जो कुछ हुआ है, कांग्रेस ने इससे सबक नहीं सीखा तो यह देर सबेर छत्तीसगढ़ में भी हो सकता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच भी सबकुछ ठीक नहीं है। क्योंकि, टीएस सिंहदेव भी लगातार मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी जता रहे है।

पंजाब में कैप्टन अमरिंदर और सिद्धू के बीच पुराना झगड़ा

पंजाब में भी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच पुराना झगड़ा है। मुख्यमंत्री से नाराज सिद्धू इन दिनों अपने क्षेत्र तक सीमित हैं। सिद्धू का यह हाल उस वक्त है, जब पार्टी का हर नेता और कार्यकर्ता जानता है कि नवजोत सिद्धू कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की पसंद हैं। इसके बावजूद वह अलग-थलग हैं।

पार्टी छोड़ने वालों की है लंबी फेहरिस्त युवा आगे

पार्टी में ऐसे युवा नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, जो वरिष्ठ नेताओं की वजह से कांग्रेस छोड़ने को मजबूर हुए हैं। मप्र में वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, बिहार में अशोक चौधरी, झारखंड में ड़ॉ अजय कुमार, गुजरात में अल्पेश ठाकोर और हरियाणा में अशोक तंवर को मजबूरन दूसरा रास्ता तलाश करना पड़ा है।

कांग्रेस को खुद को बदलना होगा

सबसे अफसोसनाक बात यह है कि पार्टी अपनी गलतियों से सबक नहीं सीख रही है। मध्य प्रदेश में सत्ता गंवाने के बाद पार्टी ने ठीक उन्हीं गलतियों को दोहराते हुए राजस्थान में भी सरकार को दांव पर लगा दिया है। जनता में यह संदेश जा रहा है कि कांग्रेस में युवा नेताओं को भविष्य नहीं है। इसलिए, पार्टी छोड़ रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी नेताओं को एकजुट क्यों नहीं रख पाती।

पार्टी नेता मानते हैं कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के साथ संवादहीनता व निर्णयों में देरी बड़ी वजह है, जबकि उसका मुकाबला आक्रामक राजनीतिक प्रतिद्वंदी से है। ऐसे में कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी होगी। यह महज इत्तेफाक नहीं है कि कांग्रेस के जिन युवा नेताओं ने पार्टी का हाथ छोड़ा है, उनमें से अधिकतर नेता भाजपा में शामिल हुए हैं। पार्टी के एक नेता ने कहा कि जब तक कांग्रेस खुद को नहीं बदलेगी, लोग इसी तरह पार्टी छोड़ते रहेंगे। इसलिए, पार्टी को तौर तरीकों में बड़ा बदलाव करना होगा। तभी कुछ उम्मीद कर सकते हैं।

जब सांप निकल जाए तो रस्सी पीटने से क्या फायदा राहुल प्रियंका ने संपर्क साधा लेकिन पायलट समझौते के लिए राजी नहीं

कांग्रेस पायलट को मनाने में जुटी है। सोमवार को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अलावा पी. चिदंबरम और केसी वेणुगोपाल ने उनसे संपर्क साधा था। कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि पायलट समझौते को राजी नहीं हुए। उन्होंने राहुल गांधी के साथ मुलाकात से भी इनकार कर दिया। हालांकि, सूत्र यह भी दावा कर रहे हैं कि पायलट ने शीर्ष नेतृत्व के समक्ष चार शर्तें रखी हैं। इनमें कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष का पद बरकरार रखने के अलावा गृह और वित्त विभाग दिए जाने की मांग भी शामिल है। उधर, पायलट सीधे कुछ बोलने और ट्‌वीट करने के बजाय करीबियों से बयान दिला रहे हैं, ताकि पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए उन पर कोई कार्रवाई न हो सके।

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