महुआ मांझी का साहित्यकार से राजनीति का सफर कैसा रहा?

साहित्यकार से राजनीतिक तक का सफर, कौन है महुआ मांझी: महुआ मांझी का बचपन से लेकर अब तक का सफर,
बचपन में ही रखा रंगमंच पर कदम, उनके एक उपन्यास लेखनी से बना दिया हस्ती:

बता दे, रांची में रहने वाली महुआ माजी ने बचपन में ही रंगमंच पर कदम रख दिया था। जिसके बाद उन्होने चित्रकारिता में अपनी रुची दिखाई। कॉलेज के दिनों में कविताएं लिखने के शौक ने उनके लेखन को और मजबूत किया जिसके बाद सन् 2006 में उन्होने “मैं बोरिशाइल्ला” नामक उपन्यास लिखा। उनके इस उपन्यास की बहुत सराहना की गयी और वह हिन्दी जगत में छा गईं। शायद वह भी नहीं जानती थी कि अपने पहले उपन्यास से वह इतनी प्रसिद्ध हो जाएंगी।

श्रीमती माजी आज जिस मुकाम पर हैं वहां तक पहुंचने से पहले उन्होंने संघर्ष और और पीड़ा का लंबा दौर देखा है. महुआ की पहली कहानी ‘मोइनी की मौत’ कथादेश में छपी थी. इस कहानी को पाठकों ने खूब पसंद किया. इसके बाद से महुआ की कहानियां लिखने की सिलसिला शुरू हो गया. साहित्य से राजनीति में आईं महुआ मांझी जेएमएम की महिला मोर्चा की अध्यक्ष हैं और दो बार रांची से चुनाव लड़ चुकी हैं. इसके अलावा महुआ महिलाओं के लिए भी काम करती हैं अब उन्हें राज्यसभा का टिकट दिया गया है, जिसके चलते जेएमएम ने अपने सहयोगी दल कांग्रेस से ले लिया पंगा, फिर क्या था जेएमएम ने उन्हें राज्यसभा भेजा, जेएमएम से महुआ मांझी पहली महिला सदस्य होंगी. जो राज्यसभा का सफर किया पूरा 10 दिसंबर 1964 को जन्मीं महुआ मांझी ने रांची विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है. मांझी समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर और पीएचडी हैं. साहित्य से सियासत में आई महुआ मांझी ने राजनीति में लंबी छलांग लगाई है. महुआ जेएमएम के साथ काफी समय से जुड़ी हुई हैं. उन्होंने साल 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में रांची सीट से चुनाव लड़ा था. हालांकि, दोनों ही बार बीजेपी के सीपी सिंह से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था. हार के बाद वह लगातार संघर्ष करती रही, आम लोगों और पार्टी में अपनी पकड़ मजबूत की फिर क्या था उन्होंने हार नहीं मानी और पार्टी ने उन्हें भरोसा दिखाया, और बन गई बड़े सदन की स्थाई सदस्य, महुआ माजी ने साहित्य के क्षेत्र में झारखंड का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया है। इस तरह श्रीमती मांझी ने साहित्य और राजनीतिक में बन गई बाजीगर!

रिपोर्ट अमित कुमार सिन्हा (रांची)

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