पटना में ‘वक्फ बचाओ-दस्तूर बचाओ’ महा रैली: लाखों की भीड़, विपक्ष का समर्थन, नीतीश सरकार पर तीखा हमला
पटना, 29 जून 2025 (रिपोर्ट: फरहान अहमद)
बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पटना के गांधी मैदान में रविवार को ‘वक्फ बचाओ-दस्तूर बचाओ’ नाम से एक ऐतिहासिक और विशाल विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसमें लाखों मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोगों ने भाग लेकर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की।
यह रैली इमारत-ए-शरिया के नेतृत्व में आयोजित की गई थी, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि नया कानून मुस्लिम समुदाय की वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण को केंद्रीकृत करता है और उनकी धार्मिक तथा संवैधानिक स्वतंत्रता में दखल देता है।
विरोध में उठी एकजुट आवाज़:
रैली में यह साफ तौर पर देखने को मिला कि यह सिर्फ मुसलमानों का नहीं, बल्कि सभी धर्मों के नागरिकों का साझा आंदोलन बन चुका है। हिंदू, सिख और ईसाई समुदाय के लोगों की भागीदारी ने इसे एक समावेशी विरोध बना दिया। मंच से जोरदार नारे लगे – “संविधान बचाओ, वक्फ बचाओ” और “धर्मनिरपेक्ष भारत जिंदाबाद”।
राजनीतिक समर्थन और नेताओं की मौजूदगी:
इस जनांदोलन को विपक्षी दलों का व्यापक समर्थन मिला। राजद नेता तेजस्वी यादव, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद, इमरान प्रतापगढ़ी, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के प्रतिनिधियों, और पप्पू यादव जैसे नेताओं ने रैली में भाग लेकर इसे “काला कानून” करार दिया।
वरिष्ठ पत्रकार फरहान अहमद ने कहा कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 26 और अल्पसंख्यक अधिकारों के खिलाफ है, और इसे हर हाल में वापस लिया जाना चाहिए।
प्रदर्शनकारियों ने बोतल के पानी पर विरोध संदेश छपवाकर अनोखे अंदाज में लोगों को जागरूक किया। आयोजकों ने स्पष्ट किया कि यह आंदोलन सिर्फ सड़क तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अदालतों और संसद दोनों में इसका विरोध जारी रहेगा
नीतीश सरकार पर नाराजगी:
रैली में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्र सरकार के खिलाफ तीखा आक्रोश देखने को मिला। वक्ताओं ने नीतीश कुमार पर दोहरा चेहरा दिखाने का आरोप लगाया और कहा कि अगर वे मुसलमानों के सच्चे हितैषी होते तो इस संशोधन का समर्थन न करते।
पटना की यह रैली आने वाले चुनावों में एक बड़े राजनीतिक मुद्दे का संकेत दे रही है। वक्फ अधिनियम में संशोधन को लेकर मुस्लिम समुदाय में व्यापक असंतोष और विरोध है, जिसे विपक्ष ने राजनीतिक हथियार बना लिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस आंदोलन का असर बिहार की राजनीति पर कितना और कैसे पड़ता है।
