वार्ड नंबर 36 की जमीनी हकीकत, मोहल्लेवासी खुद कर रहे हैं नालियों की सफाई
सहारनपुर का नाम जब नगर निगम की आय और विकास की रिपोर्टों में आता है, तो लगता है शहर बहुत तरक्की कर रहा है। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है। वार्ड नंबर 36 की गलियों में जब आप कदम रखेंगे, तो नाक पर रूमाल रखना पड़ेगा। पीपल वाली मस्जिद से लेकर खुर्शीद के डिपो तक फैली नाली गंदगी और जाम का उदाहरण बन चुकी है। नतीजा ये कि नाली का गंदा पानी घरों में घुसने लगा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छ भारत अभियान पूरे देश में सफाई के लिए प्रेरणा बना है। लेकिन सहारनपुर नगर निगम इस अभियान को मज़ाक समझ बैठा है। नगर निगम के सफाई कर्मचारियों की गैरहाजिरी और उदासीन रवैये ने मोहल्ले की सफाई व्यवस्था को चौपट कर दिया है।
कई मोहल्लेवासियों ने बताया कि नगर निगम की ओर से नालियों की सफाई वर्षों से नहीं हुई है। मजबूरी में अब लोग खुद ही झाड़ू और फावड़ा लेकर सफाई करने पर मजबूर हैं।
– मोहल्ले के निवासी सलीम भाई का कहना हैं कि
हर हफ्ते हम खुद ही नाली साफ करते हैं। गंदा पानी घर में घुसने लगा है, मच्छर बढ़ गए हैं। कोई सुनवाई नहीं हो रही।”
कॉलोनी में लगे कूड़ेदान गायब हैं और नाली ही कचरा फेंकने का जरिया बन चुकी है। कभी-कभार सफाईकर्मी आते भी हैं, तो नाली से निकला कचरा वहीं छोड़ जाते हैं। इससे और ज्यादा दुर्गंध फैलती है।
– वहीं वार्ड की एक महिला निवासी, नाम ना बताने की शर्त पर बताती हैं कि जब से नाली बनी है, एक भी बार रेगुलर सफाई नहीं हुई। पार्षद को कई बार बताया, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा।”
वार्ड नंबर 36 के पार्षद की ज़िम्मेदारी सिर्फ जीतकर बैठ जाना नहीं है। पार्षद स्थानीय निकाय का प्रतिनिधि होता है, जिसे जनता ने समस्याओं के समाधान के लिए चुना है।
पार्षद को चाहिए: नगर निगम से नियमित सफाई की व्यवस्था सुनिश्चित कराएं।
हर हफ्ते वार्ड का निरीक्षण करें, खासकर बरसात से पहले।
सफाईकर्मियों की उपस्थिति और कार्यप्रणाली की मॉनिटरिंग करें।
नाली जाम या कूड़ा जमा होने की शिकायतों पर तुरंत कार्यवाही कराएं।
मोहल्लेवासियों से संवाद बनाकर चलें ताकि छोटी समस्याएं बड़ा रूप न लें।
सवाल जो जवाब मांगते हैं
क्या नगर निगम का काम केवल टैक्स वसूलना भर है?
क्या सफाईकर्मियों पर कोई निगरानी नहीं?
क्या वार्ड पार्षद का फर्ज खत्म हो गया चुनाव जीतते ही?
वार्ड नंबर 36 का हाल शहर की उस तस्वीर को दिखाता है, जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। जब जनता खुद नालियां साफ कर रही हो और जिम्मेदार लोग चैन की नींद सो रहे हों, तो ये सिर्फ गंदगी नहीं, एक सिस्टम की नाकामी है।
अब वक्त है कि संबंधित पार्षद और नगर निगम दोनों मिलकर इस समस्या को गंभीरता से लें। वरना स्वच्छ भारत का सपना सिर्फ विज्ञापनों तक ही सिमट कर रह जाएगा।