PVT LTD कंपनियां कर रही हैं कर्मचारियों और मजदूरों का शोषण! अधिकारी बोले सुबूत के साथ आए तो होगी कार्रवाई…

रिपोर्ट – सरवर कमाल

प्राइवेट लिमिटेड कम्पनियाँ कर रही हैं भरपूर शोषण, साहस और जागरूकता का भारी अभाव बना रहा है ज़िन्दगी नर्क

  • भारत मे एक क्षेत्र ऐसा है जहाँ मनचाहा शोषण होता है और जिसका शोषण होता है वो इंसान भी शोषण कराते रहते हैं, जी हाँ हम बात कर रहे हैं प्राइवेट नौकरी की जिसमे कर्मचारियों का तरह तरह से शोषण किया जाता है जिसमे कुछ शोषण तो उन्हें समझ में आते हैं और बाक़ी के कई शोषण ऐसे भी हैं जिनकी उनको कोई बुनियादी जानकारी भी नहीं। कर्मचारी इस तरह के प्रत्यक्ष और परोक्ष शोषण को अपनी नासमझी और मज़बूरी के कारण कराता रहता है क्यूंकि ज़िंदगी और परिवार पालने की जद्दोजहद की ख़ातिर नौकरी बचाना पहला और अंतिम मक़सद बन जाता है. यहाँ हमारी ऐक्सक्लूसिव जाँच मे जो तस्वीर सामने आई वो परेशान करने वाली है

आम तौर से लोगों में ये समझ है कि वो प्राईवेट क्षेत्र की हर तरह की नौकरियों को एक ही नज़र से देखते और समझते हैं जबकि ज़मीनी सच्चाई इस से अलग है, प्राइवेट नौकरी को मुख्यत: तीन तरह से बांटा गया है लिमिटेड, प्राइवेट लिमिटेड और फर्म। जिसमे लिमिटेड कंपनियों मे प्राइवेट लिमिटेड और फर्म के मुक़ाबले हर मामले मे कर्मचारियों के काफ़ी बेहतर हालात हैं इन कंपनियों मे अनुभव, शिक्षा के आधार पर अच्छा वेतन, प्रोविडेंट फण्ड, ग्रेच्युटी, ट्रैवल भत्ता आदि बातों के साथ काम का बेहतर और पेशेवर माहौल भी मिलता है, अगर बात की जाए प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों की तो यहाँ क़ानूनी बारीकियों के विरोधाभासों की वजह से नाम के आगे तो प्राइवेट लिमिटेड लगा होगा लेकिन एम्प्लाइज के लिए बेहतर सुविधा और माहौल के स्तर में ज़बरदस्त अंतर देखने को मिलता है कई जगह कुछ प्रतिशत तक पेशेवर नीति को अपनाया जाता है लेकिन इस की ज़्यादातर कंपनियों मे कर्मचारियों के लिए बद्तर हालात हैं.

पाँच से दस कर्मचारियों के दम पर कंपनी को चलाया जा रहा है उनमे से भी या तो किसी को भी अपॉइंटमेंट लेटर नहीं दिए गए हैं या इक्का दुक्का को ही दिए गए हैं, सैलरी कैश दी जाती है या मालिक अपने किसी विश्वसनीय व्यक्ति के सेविंग खाते से कर्मचारियों को पैसा ट्रांसफर कराता है. प्रोविडेंट फण्ड, ग्रेच्युटी, ट्रैवल अलाउंस जैसी अनिवार्य सुविधाओं देने का तो दूर-दूर तक ज़िक्र नहीं है. ग़ैर ज़रूरी मुद्दों पर भी सैलरी मे भारी कटौती कर ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाया जाता है, यहीं कहानी ख़त्म नहीं होती कई मामलों में तो आई कार्ड भी नहीं दिए गए हैं और अगर दिए गए हैं तो बार कोड जैसे आवश्यक नियम के उलट बस गढ़-मढ़ कर दे दिए हैं, ओवर टाईम भी लिया जा रहा है लेकिन ओवर टाईम के काम के घंटों के हिसाब से उनको पैसा नहीं दिया जाता, कई साल एक जगह काम करने के बाद भी सैलरी नहीं बढ़ाई जाती इसके अलावा कैजुअल लीव्स, अर्न्ड लीव्स जैसी मासिक छुट्टियों का भी कोई प्रावधान नही है. यानि कर्मचारी का वर्तमान और भविष्य पूरी तरह से अँधेरे की भेंट है.

बात अगर की जाए की कर्मचारियों को अपने इन अधिकारों के बारे मे कितना मालूम है तो सच्चाई ये है की अनपढ़, कम पढ़े लिखे के साथ साथ ग्रेजुएट्स और पोस्ट ग्रेजुएट्स को भी अपने इन बुनियादी अधिकारों के बारे मे ज़्यादा कुछ नही पता और न वो कोई माँग विरोध जताते। कई जगह ये भी स्थिति है कि जो पोस्ट विशेषज्ञ स्नातक परास्नातक के लिए होनी चाहिए वहां छटी नौंवी कक्षा पास लोगों को बैठा रखा है. इस से कंपनी के मालिक को कुछ एक्स्ट्रा फ़ायदे मिलते हैं जैसे – बेहद कम पढ़े लिखे होने के की वजह से ऐसे कर्मचारी का दिमाग़ ज़्यादा विकसित और तर्क क्षमता वाला नही होता तो भविष्य में कभी भी ऐसे कर्मचारी से किसी भी तरह की माँग और विरोध की फ़िक्र नहीं होती, ऐसा कर्मचारी निर्धारित बेहद कम वेतन में भी बिना किसी न नुकुर किये मालिक के घर की सब्ज़ी राशन लाना, बॉडी मसाज कर देना, झाड़ू पोंछा करना जैसी सेवा भी कर देता है, ऐसा कर्मचारी ऑफिस के ख़बरी का काम भी बहुत अच्छे तरीक़े से कर देता है और इस काम को मालिक द्वारा दी गई ख़ास तवज्जो और अपनी क़ाबिलियत समझ के चलता है. मालिक का विवाद झगड़ा होने पर ऐसे कर्मचारी को गवाह और बॉडीगार्ड के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है यानि बेहद सस्ते रेट मे इतनी सुविधा वाला इंसान ख़रीद लिया जाता है.

इस तरह की कम्पनियाँ पूरे भारत मे बड़ी तादाद में हैं उत्तराखंड मे भी कई मुख्य शहरों सहित देहरादून मे भी ऐसी कंपनियों का जाल है। अगर कोई कर्मचारी इन अव्यवस्थाओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता भी है तो उसको झूठे केस में फँसा देने, वेतन न देने, काम से निकाल देने की धमकी दी जाती है.

इस बारे में भारत का श्रम क़ानून क्या कहता है, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त क्या है?

  • श्रम क़ानून के हर एक्ट मे श्रमिक की परिभाषा अलग
  • 1923 के श्रम अधिकार अब भी जारी जो आज की परिस्तिथि के हिसाब से कुछ ख़ास बदलाव होने ज़रूरी।
  • ऐक्ट मे कर्मचारी को ऑफर लेटर, अपॉइंटमेंट लेटर जैसे बुनियादी दस्तावेज़ों को देने की समयावधि का कोई ज़िक्र नही.
  • न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम के मुताबिक़ वेतन से बहुत कम वेतन
  • श्रम अधिनियम के अनुसार सेलरी स्लिप, ग्रेच्युटी, ईएसआई, प्रोविडेंट फंड, डी.ऐ., टी.ऐ. जैसी अनिवार्य सुविधाएं नही दी जाती।
  • कम्पनियों/संस्थानों में हो रही इन भारी अनियमितताओं का सम्बंधित विभाग की तरफ़ से औचक निरक्षण नहीं होता जिस से नियोक्ताओं को कर्मचारियों के शोषण की खुली छूट मिली है.
  • श्रम अधिनियम के मुताबिक़ ओवर टाइम करने वाले कर्मचारियों को निर्धारित वेतन के हिसाब से प्रति घंटे के लिए दुगना पारिश्रमिक मिलना तय है लेकिन इस क़ानून की खुलेआम डंके की चोट पर धज्जियां उड़ाई जाती हैं.
  • श्रम क़ानूनों मे अगर समय के हिसाब से भी वेतन का बढ़ाया जाना सुनिश्चित किया गया है लेकिन नियोक्ता अपने कर्मचारियों का वेतन कई कई साल बाद भी नहीं बढ़ाते या नियम के विपरीत बहुत कम बढ़ोत्तरी करते हैं.
  • श्रम क़ानूनों में कम्पनियों/संस्थानों का ऑनलाइन माध्यम से निरिक्षण करने का प्रावधान भी कर दिया गया है लेकिन यह बिल्कुल बेअसर है.

ऐसे बिगड़े सुरते हाल मे क्या होना चाहिए?

  • 1923 के जारी लेबर लॉ मे आज की परिस्थिति के हिसाब से बदलाव किये जाएं।
  • श्रमिक क़ानून मे 24000 तक मासिक वेतन पाने वाले व्यक्ति का नियोक्ता से सेवक और सेवायोजक के सम्बन्ध मे बदलाव कर नियोक्ता और कर्मचारी सम्बन्ध दर्शाना चाहिए।
  • श्रम क़ानून के मुताबिक़ वेतन और भत्तों की मूल संरचना समान होनी चाहिए।
  • श्रम विधि के हिसाब से कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को भी परमानेंट कर्मचारियों के समान वेतन भत्तों का प्रबंध किया जाए.
  • नियोक्ता को कर्मचारी के सुरक्षित भविष्य के लिए ई एस आई, प्रोविडेंट फण्ड, सैलेरी स्लिप की सुविधा देनी चाहिए।
  • नियोक्ता द्वारा अगर ऑफर लेटर/अपॉइंटमेंट लेटर न देना, नियम के विपरीत वेतन आदि कटौती, सैलेरी स्लिप न देना, धमकी देना, तय वेतन से कम वेतन देना, बिना नोटिस के सेवा से निकालना आदि जैसे शोषण के लिए कर्मचारी को जागरूक रहते हुए श्रम कानूनों के अंतर्गत दिए गए अपने अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमे वो नियोक्ता के विरुद्ध सादे कागज़ पर शिकायत दर्ज कर श्रम न्यायालय मे वाद दायर कर सकता है.

नियोक्ता/कंपनियों /संस्थानों द्वारा कर्मचारियों का तरह तरह से शोषण किये जाने और अधिकारों के मुद्दे पर उप श्रमायुक्त मधू नेगी चौहान ने विस्तार से बात की और कहा की ‘कर्मचारियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ना आना चाहिए, वे सबूत जुटाएं, सरकारी स्तर पर क़ानून में ज़्यादा कमी नहीं लेकिन कुछ ख़ास बदलाव बहुत ज़रूरी हैं साथ ही संस्थानों का अनियमिताओं के विरुद्ध औचक निरिक्षण होना चाहिए ऑनलाइन निरिक्षण का तरीक़ा कामगार नहीं है’

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