मेरी प्यारी हिन्दुस्तानी संस्कृति।

भारत एक ऐसा देश है जहां विदेशी रिवाजों का बहुत जल्दी असर हो जाता है और पाश्चात्य तहज़ीब अपनाने में हम गर्व महसूस करते हैं लगता यह है की हम भारतवासी हमारी मौजूदा परंपराओं से बहुत ज्यादा शायद खुश नहीं है और हमें जो सांस्कृतिक विरासत मिली है उसको हम छिन बिन करने के लिए हर समय तत्पर रहते हैं। इसलिए हम दिनों दिन वेस्टर्न कल्चर से आकर्षित होते हैं और वहां पर चल रही परंपराओं को अपनी जिंदगी में अपना कर मॉडर्न भारतीय बनना चाहते हैं दूषित पाश्चात्य संस्कृति को अपनाते हैं और अपने आप को मॉडर्न सभ्यता में ढालने की भरपूर कोशिश करते हैं चाहे उसमें कितनी ही बुराई हो हमने पश्चिम की नकल करनी है। इसी तरह का एक रिवाज आजकल ओपन मैरिज के नाम से भारत में भी शुरू हो रहा है हालांकि अभी यह बिल्कुल शुरुआती बात हे यह परंपरा पाश्चात्य संस्कृति के परिधान एवं परिवेश में एक शैतानी संस्कृति है जो पाश्चात्य मुल्कों में प्रचलित है परंतु इस के दुष्परिणामो के चलते इस धारणा को उन्होंने अपने समाज से अलग करना शुरू कर दिया है और भारतीय समाज में यह परंपरा आयातित होनी शुरू हो गई है।

क्या है यह ओपन मैरिज। एक शादी शुदा युगल आपसी सहमति से पति अपनी पत्नी के अलावा किसी दूसरी औरत से अपने संबंध रखे और पत्नी अपने पति के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति से संबंध रखे और यह काम पति पत्नी एक दूसरे की जानकारी और इच्छा से करें। कितना गैर फ़ित्री और शैतानी रिश्ता है यह कि होने वाली औलाद भी नाजायज़ हो जाएगी और फिर पैदा होगी एक शैतानी नस्ल जिसको ना मां की मर्यादा होगी ना बाप की शर्म। ना घर गृहस्थी का मान होगा ना समाज का लिहाज़। पति पत्नी में मतभेद होने पर तलाक के मामले बढ़ जाएंगे और ज्यादा मतभेद बढ़ने पर कत्ल ग़ारत गिरी की नौबत आएगी और बसी बसाई घर गृहस्थी उजड़ जाएगी। पति को अगर दूसरी औरत से ज्यादा लगाओ हो गया तो समान नागरिकता कानून के तहत पहली पत्नी को तलाक दे देगा और अगर पत्नी को दूसरा बेहतर साथी मिल गया तो वह इसी कानून के तहत पहले पति को तलाक दे सकती हैं।

क्या भारत देश में जहां जन्म जन्मांतर की कसमें खा कर शादियां होती है और घर गृहस्थी को आदर्श जिंदगी माना जाता हैं वहां पर इस तरह के शैतानी संस्कृति की कोई गुंजाइश हैं और यह सब कुछ इसलिए हो रहा है कि हम पाश्चात्य तहज़ीब को अपना कर मॉडर्न सभ्यता वाला देश बनना चाहते हैं और व्यक्तिगत आज़ादी को परम समझते हैं। हमें इस सांस्कृतिक पतन से इस नस्ल और आगे आने वाली नस्ल को बचाना होगा और इन शैतानी मंसूबों जिसमें लिव इन रिलेशनशिप, ओपन मैरिज, मादकता और सामाजिक दिवालियेपन वाले कानूनों और परंपराओं के खिलाफ एक वृद्ध कोशिश करनी पड़ेगी वरना याद रहे अतीत में कौमों के एक गुनाह करने पर उनको दुनिया से मिटा दिया गया यह भारतीय समाज तो आजकल सारे गुनाह एक साथ करने पर तत्पर हैं और उन गुनाहों को कानूनी मान्यता भी दी जा रही है तो फिर पतन भी लाज़मी है। यह तो प्यारे आका की दुआ के कारण हम पर आज़ाब नहीं आता वरना हम ग़ैबी पकड़ के मुस्तहिक़ हैं।

खुर्शीद अहमद सिद्दीकी,
37, प्रीति एनक्लेव माजरा देहरादून उत्तराखंड।

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