सिर्फ नफरत मुफ्त में बांटे की सरकार बाकी सब के लगेंगे पैसे! हरविंद्र राणा…

सिर्फ नफरत मुफ्त बांटेगी सरकार,
बाकी सबके पैसे लगेंगे और कुछ दिनों में सरकार को छोड़कर बाकि कुछ भी सरकारी नहीं होगा यहाँ तक कि अब देश की सेना भी संविदा पर रखी जायेगी बिल्कुल जब नाश ही करना है तो सत्यानाश क्यूँ नहीं !

जी हां, खबर आम है कि श्रीलंका से सबक लेते हुए, राज्यों को अपने मुफ्तखोरी की योजनाओं से बचने की सलाह, अफसरों ने प्रधानमंत्री को दी है।

पहला आश्चर्य यह कि महाबली को सलाह देने वाले अफसर पैदा हो गए। और दूसरा आश्चर्य की हाई लेवल मीटिंग की सलाह लीक भी हो गयी।

सात सालों में देश का कर्ज 52 लाख करोड़ से बढ़कर 125 लाख करोड़ हो चुका है। इस दौर में शिक्षा, स्वास्थ्य, डीजल पेट्रोल, बिजली, फर्टिलाइजर हर क्षेत्र की सब्सिडी खत्म है। जीएसटी का कलेक्शन हर माह रिकार्ड तोड़ रहा है, तो कर्ज कैसे बढ़ा???

क्या स्कूटी, लैपटॉप, मोबाइल बाटने से.. या मुफ्त राशन की योजना से?? हिसाब कीजिए। विचार कीजिये ?

हर स्टेट की मुफ्तिया योजनाओ का खर्च इतने बरसों में 20 हजार करोड़ से अधिक नही होगा। याने बस “एक” सेंट्रल विस्टा का बजट..

जी हां जनाब!!

गरीब मूलक योजनाएं कभी देश को बर्बाद नही करती। गरीब पर हुए खर्च की पाई पाई अंतड़ी फाड़कर सरकार के खजाने में वापस जाती है, कई गुना जाती है। उससे वसूल की जाती है।

वह दो रुपये प्रोडक्शन कॉस्ट की बिजली आठ रुपये की खरीदता है। 35 रुपये का पेट्रोल 110 में खरीदता है। वह शिक्षा स्वास्थ्य अपने पैसे से खरीदता है, सड़क को टोल देकर बनवाता है।

हर वह काम, जिसका पैसा सरकार टैक्स में पहले ही झटक चुकी है, उसका दोबारा पेमेंट करता है। तो सरकार का पैसा कहां जाता है??

दरअसल अफसरों ने यह नही बताया कि 25 हजार करोड़ के हाइवे पर असल मे दस हजार करोड़ ही लगते हैं। तो ऐसे 100 प्रोजेक्ट से देश में कर्ज बढ़ता है।

वह गैर जरूरी एयरपोर्ट, छटाँक भर दूरी की बुलेट ट्रेन, घाटे के शोपीस मेट्रो रेल औऱ गलत जगह पर बने पोर्ट से बढ़ता है। वह कमाई के स्रोत, भंगार के भाव बेचने से बढ़ता है।

मुकम्मल योजना के बगैर, चुनावी भीड़ से बोली लगवा, उनके बीच सवा लाख करोड़ की बोटी फेंकने से बढ़ता है।

कर्ज गरीबो को आटा देने से नही बढ़ता साहब। अपने क्रोनीज को हर साल लाख पचास हजार करोड़ का कर्ज माफ करने से बढ़ता है। दिन रात प्रचार रैलियों, चैनल पर पैसा फूंकने से बढ़ता है।

असल मे कर्ज तो 400 करोड़ का रफेल 1500 करोड़ में खरीदने से बढ़ता है।

तो देश भर की सारी सरकारों के सारी मुफ्तखोरी की योजनाओं को जोड़ दें, तो जिसका हिस्सा जीडीपी का 1% भी नही, वह आर्थिक संकट का सबब नही।

तो जो खबर आप पढ़ रहे हैं, वह अफ़सरो ने सरकार को नहीं बताई बल्कि यह सरकार ने अफसरों को बताई है। औऱ पत्रकारों को बताई है बाकि देश का 75% मीडिया पर सिर्फ़ तीन पूँजीपतियों की हिस्सेदारी है जो बख़ूबी अपने हिसाब से प्रचार करा रहे हैं, मुझे दिक़्क़त मीडिया से नहीं वो तो पैसा लेकर उसके बदले काम कर रहा है मुझे दिक़्क़त है आप लोगों से समाज से युवाओं से जो ख़ामोश हैं और ग़ुमराह हो रहे हैं मुद्दों से भटक रहे हैं, साथियों अभी भी समय है जागो और हिसाब लो नहीं तो भारत को श्रीलंका बनने में देर नहीं लगेगी !

जीएसटी बंटवारे की धूर्त नीति से राज्यों के पैसे पर बैठी केंद्र सरकार, अब उनके बकाया को खा जाने का प्रीटेक्स्ट बुन रही है। उनकी आर्थिक नीतियों पर आपत्तियों का बहाना ढूंढ रही है।

उस खबर को पढ़ते हुए आप समझ लें, कि फ्रीबीज पाने का हक, बस उन्हें है जिसके पैसे से यह सरकार खड़ी है।

और जनता… ??

उसे तो नफरत मुफ्त बांटी जाएगी।
बाकी सबके पैसे लगेंगे।

मुफ़्त राशन तो देंगे लेकिन मुफ़्त अच्छी शिक्षा नहीं देंगे क्योंकि मुफ़्त राशन मुफ़्तख़ोरी की आदत डालता है और शिक्षा सवाल पैदा करती है, समझदार बनाती है आत्म निर्भर बनाती है इसलिए ना रहेगा बाँस और ना बजेगी बाँसुरी !

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