तीन इस्लामी विद्वानों के इंतकाल पर जमीयत उलमा-ए-हिन्द बुढ़ाना ने आयोजित की शोकसभा।

मौलाना गुलाम मुहम्मद वास्तनवी, मौलाना यामीन और मौलाना आकिल को किया गया याद ।

शाहपुर जमीयत उलमा-ए-हिन्द बुढ़ाना के तत्वावधान में एक ताज़ियती इजलास (शोकसभा) का आयोजन मदरसा सैयदना बिलाल कसेरवा, में किया गया। जिसमें क्षेत्र के अनेक उलमा, समाजसेवी, शिक्षाविद एवं अवाम उपस्थित रहे। इस दौरान देश की तीन जानी-मानी इस्लामी हस्तियों जिनमें दारुल उलूम देवबंद के पूर्व मोहतमिम मौलाना गुलाम मुहम्मद वस्तानवी,शेखुल हदीस मौलाना यामीन जलालाबाद और मौलाना सैय्यद आकिल संचालक मदरसा मज़ाहिर उल उलूम सहारनपुर के इंतकाल पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए उन्हें खिराजे अक़ीदत पेश किया ओर उनकी सेवाओं पर वक्ताओं ने विस्तार से चर्चा की । शोक सभा की अध्यक्षता जमीयत उलमा बुढ़ाना के नगर अध्यक्ष मुफ्ती फरमान क़ासमी तथा संचालन मौलाना आसिफ इस्लाही ने किया। हाफिज राशिद कुरैशी ने उलेमाओं की ख़िदमात पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मौलाना गुलाम मुहम्मद ने हजारों मदरसों एवं मस्जिदों की स्थापना की ओर शिक्षा के कार्य को अंजाम दिया। वक्ताओं ने कहा कि मौलाना गुलाम मुहम्मद एक प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान के संस्थापक है जहां लगभग 20 हजार छात्र शिक्षा को ग्रहण करते है। वक्ताओं ने कहा कि मौलाना दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम भी रहे चुके है और वो समाजसुधारक और दूरदर्शी आलिम थे। उन्होंने दीनी तालीम को जन-जन तक पहुंचाने के लिए जीवन भर संघर्ष किया और कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की। ओर मेडिकल कॉलेज की भी स्थापना करके एक नया रास्ता खोला है। वक्ताओं ने कहा कि उनका इंतकाल से शिक्षा के कार्यों के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वक्ताओं ने वहीं मौलाना यामीन शेखुल हदीस जलालाबाद को उनकी सादगी, लगन और समाज के प्रति सेवा भाव के लिए याद किया ओर कहा कि मौलाना की सादगी एक मिसाली थी,वे एक लोकप्रिय शिक्षक और छात्रों के बीच विशेष रूप से सम्मानित थे। वक्ताओं ने कहा कि मौलाना ग्रामीण इलाकों में दीनी जलसों जाया करते थे और दीनी समाजी जागरूकता फैलाने में उनका बड़ा योगदान है। वक्ताओं ने सहारनपुर के मशहूर विद्वान ओर मदरसा संचालक मदरसा मज़ाहिर उल उलूम सहारनपुर के मौलाना सैय्यद आकिल के संबंध में भी विस्तार से रोशनी डालते हुए कहा कि मौलाना एक विद्वान सूझ-बूझ वाले मार्गदर्शक थे और शरीअत के ज्ञाता के रूप में उनको जाना जाता था। उनके द्वारा किए गए कार्य ऐतिहासिक रहे है। मौलाना के हज़ारो छात्र दुनिया भर में जगह जगह पढ़ा रहे ओर शिक्षा हेतु बड़े बड़े कार्य कर रहे है।
शोक सभा में फैसल मेरठी ने भी कलाम पेश किया।

शोक सभा को मुफ्ती असगर क़ासमी,मुफ्ती गुलफाम क़ासमी,मौलाना मंजूर,क़ारी अब्दुल खालिक,हाफिज तहसीन,मौलाना इक़बाल क़ासमी,मुफ्ती शाह आलम,क़ारी आक़िल,मौलाना खालिद, क़ारी आमिर,मौलाना इस्लामुद्दीन क़ासमी क़ारी तहसीन,मौलाना खालिद,मुफ्ती आरिफ बोपरा,क़ारी हारून,क़ारी मोहब्बतदीन आदि गणमान्य लोगों ने अपने विचार रखते हुए इन तीनों विद्वानों को दीनी खिदमत की मिसाल बताया। मुफ्ती वसीम नफीस,हाफिज कमालुद्दीन ,मौलाना सालिम क़ासमी, मौ0आसिफ कुरैशी,क़ारी जीशान,मौलाना शहज़ाद मुफ्ताही,मास्टर फारूक,क़ारी कुतुबुद्दीन,मौलाना दीन मुहम्मद,के अलावा सैकड़ों लोग मौजूद रहे।

अंत में दुआ-ए-मग़फिरत कराई गई, जिसमें अल्लाह से मरहूमीन के लिए जन्नतुल फिरदौस में ऊंचा मुक़ाम और उनके परिजनों को सब्र अता करने की दुआ की गई।

सभा में मौजूद हर व्यक्ति की आंखें नम थीं और माहौल गमगीन। लोगों ने कहा कि इन तीनों आलिमों की रौशनी कभी बुझ नहीं सकती — वे अपने इल्म, किरदार और खिदमात के जरिए हमेशा जिंदा रहेंगे।

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