दार्जिलिंग की चाय अब आईसीयू में नजर आ रही है, उद्योग के सामने खड़ा हुआ अस्तित्व का संकट,
लोकल कारोबारियों के अनुसार दार्जिलिंग चाय उद्योग को जीवित रखने के लिए सब्सिडी के रूप में कुछ सरकारी सहायता की जरूरत है जो नेपाल से आने वाली चाय से उत्पन्न खतरे को दूर करने में मदद करेगी।
लोगों को रिफ्रेश करने वाला चाय उद्योग खुद ही दर्द से कराह रहा है
सदियों से भारत में चाय हर एक आम भारतीय की दिनचर्या का हिस्सा है। लोग खुद को तरोताजा रखने के लिए दिन में कम से कम दो बार अवश्य चाय का मजा लेते ही है। लेकिन लोगों को रिफ्रेश करने वाला चाय उद्योग खुद ही दर्द से कराह रहा है,क्या आम क्या खास सभी लोगों के लिए चाय रिफ्रेशमेंट का हिस्सा है, भारतीय चाय निर्यातक संघ (आईटीईए) के चेयरमैन कहा कि दार्जिलिंग चाय उद्योग ‘आईसीयू में भर्ती मरीज’ की तरह है और दम तोड़ रहा है। वर्ष 1881 में स्थापित भारतीय चाय संघ (ITA) भारत में चाय उत्पादकों का प्रमुख और सबसे पुराना संगठन है। इसने नीतियाँ बनाने और उद्योग की वृद्धि एवं विकास के लिये कार्रवाई शुरू करने की दिशा में एक बहुआयामी भूमिका निभाई है।मौसम की मार के चलते चाय की राजधानी कहे जाने वाले दार्जिलिंग में उत्पादन घट रहा है। वहीं नेपाल से बढ़ रहे आयात ने उद्योग की कमर तोड़ दी है।
दार्जिलिंग की फसल प्रतिवर्ष 65 लाख किलोग्राम तक कम होने के साथ नेपाल में उत्पादन 60 लाख किलोग्राम हो गया है
श्री कनोरिया ने कहा कि नेपाल की चुनौती गंभीर हो गई है क्योंकि वह भारतीय बाजार में घुसपैठ कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘दार्जिलिंग की फसल प्रतिवर्ष 65 लाख किलोग्राम तक कम होने के साथ नेपाल में उत्पादन 60 लाख किलोग्राम हो गया है। हमारे पास अब एक गंभीर प्रतिस्पर्धी है।’’ उन्होंने कहा कि आंशिक रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण कम उत्पादकता की वजह से दार्जिलिंग की फसल घटी है, भारत के विपरीत बागान श्रम अधिनियम द्वारा शासित होता है। उन्होंने कहा, ‘‘दार्जिलिंग एक उच्च लागत वाला परिचालन बन गया है, जिसमें 60 प्रतिशत लागत मजदूरी की बैठती है। दार्जिलिंग के अधिकांश बागानों को 200 रुपये प्रति किलोग्राम का नुकसान हो रहा है और प्रत्येक बागान को कुछ करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।’’ कनोरिया ने कहा कि दार्जिलिंग चाय उद्योग को जीवित रखने के लिए सरकार से कुछ समर्थन की आवश्यकता है।
दार्जिलिंग चाय जिसे “चाय की शैंपेन” के रूप में भी जाना जाता है
भारत दुनिया के शीर्ष चाय खपत करने वाले देशों में से एक है, जहाँ देश में उत्पादित चाय का 80% घरेलू आबादी द्वारा उपभोग किया जाता है।भारत से निर्यात की जाने वाली अधिकांश चाय काली चाय है जो कुल निर्यात का लगभग 96% है। दार्जिलिंग चाय जिसे “चाय की शैंपेन” के रूप में भी जाना जाता है, दार्जिलिंग चाय के अन्य दो प्रकार यानी ग्रीन और व्हाइट टी में भी GI टैग है।ऐसा माना जाता रहा है, कि चाय की उत्पत्ति उत्तर-पूर्वी भारत, उत्तरी म्याँमार और दक्षिण-पश्चिम चीन में हुई थी,चाय कैमेलिया साइनेंसिस के पौधे से बना एक पेय है। पानी के बाद यह दुनिया का सबसे ज़्यादा पिया जाने वाला पेय है। लेकिन अभी तक यह निश्चित नहीं किया जा सका है कि इनमें से वास्तव में यह पहली बार कहाँ पाई गई थी। इस बात के प्रमाण हैं कि 5,000 वर्ष पूर्व चीन में चाय का सेवन किया जाता था।
रिपोर्ट:-अमित कुमार सिन्हा