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आखिर जीत ही गई नफरत..

हमारे देश में शायद देशवासी इंसान नही रहते बस सिर्फ हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख, आदि रहते है जो हालात बदलने पर एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं फिर तड़ा तड़ गोलियां चलती हैं, तलवारों से इंसानी जिस्म काटा जाता है, खून बहता है और घरों, दुकानों और वाहनों को आग के हवाले किया जाता है।

 सरकारी हो या निजी संपत्ति, धार्मिक हो या सामाजिक सबको जला दिया जाता है। भीड़ द्वारा , निहत्थे बेकसूर गरीबों, बेसहारा लोगों को दरिंदगी के साथ कत्ल किया जाता है।

प्रशासन द्वारा फौरन धारा 144 वा कर्फ्यू लगाया जाता है सैकड़ों गिरफ्तारियां होती है लोग साला साल जेल की सलाखों के पीछे सड़ते हैं। इंसाफ के लिए दर दर भटकते हैं मगर इंसाफ दूर की कोड़ी की तरह अदृश्य हो जाता है।

हाल ही में मणिपुर में महीनों से हो रहे फसाद जिसमे पचास हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गए, सैकड़ों चर्च जल गए, भीड़ द्वारा औरतों की इज्ज़त तार तार कर दी गई।  सरकार तमाशाई है और उपद्रवी हौसला मंद। तीन दिन से यह तांडव नूह मेवात से हरियाणा के कई शहरों में फैल रहा है।

  शूरवीरो की भीड़ जा रही है, मस्जिद को जला रही है निहत्थे, बेकसूर इमाम को शहीद कर रही है यह किस तरह की बहादुरी हैं यह तो पिचाश की खूनी प्यास के अतिरिक्त तो कुछ नही है।  हो सकता है की इससे कुछ राजनीतिक समीकरण बन जाए।  हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख होकर वोटो का ध्रुवीकरण हो जाय मगर गुजरात का बहता हुआ खून अभी भी बोलता है।  गुलबर्गा सोसाइटी में हुए जनसंहार की बाजगश्त आज भी सुनाई देती है।  बेकसूरों का खून माथे पर चढ़ कर बोलता है।

आज नही कल इंसाफ होगा।  एक एक जुल्म का हिसाब होगा।  यह साठ सत्तर साल की जिंदगी के बाद उस मालिक, खालिक के दरबार में हर किसी के कृत्य को तोला जाएगा और वहा पर पूरा पूरा इंसाफ होगा।  झूठी दलीलें काम नही आयेगी। अगर यह समझ में आजाये तो पिचाश प्रवृत्ति का अंत हो सकता है और सौहार्द कायम हो सकता है नही तो आज मणिपुर हरियाणा जल रहा है कल देश में यह लावा फटेगा और सत्ता ख़ामोश तमाशाई तमाशा देखती रहेगी देशवासियों का खून बहता रहेगा।

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