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Freedom Report 2021:अमेरिकी रिपोर्ट में दावा- सरकार ने आलोचकों पर कसा शिकंजा-भारत में पहले से कम हुई ….

नागरिक स्वतंत्रता की रेटिंग में सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को पिछले साल के 60 में से 37 नबंर के मुकाबले इस साल 60 में से 33 नंबर दिए गए हैं.रिपोर्ट में लिखा है कि सरकार की तरफ से पिछले साल लागू किया गया लॉकडाउन खतरनाक था. इस दौरान लाखों प्रवासी मजदूरों को पलायन का सामना करना पड़ा.

Freedom Report 2021: अमेरिकन संस्था ‘फ्रीडम हाउस’ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में लोगों की आजादी पहले से कुछ कम हुई है. रिपोर्ट में लिखा है कि भारत एक ‘स्वतंत्र’ देश से ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ देश में बदल गया है. दरअसल इस रिपोर्ट में ‘पॉलिटिकल फ्रीडम’ और ‘मानवाधिकार’ को लेकर तमाम देशों में रिसर्च की गई थी. रिपोर्ट में साफ लिखा है कि साल 2014 में भारत में सत्तापरिवर्तन के बाद नागरिकों की स्वतंत्रता में गिरावट आई.

भारत की स्थिति में बदलाव, वैश्विक बदलाव का ही हिस्सा- रिपोर्ट

‘डेमोक्रेसी अंडर सीज ‘शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत की स्थिति में जो बदलाव आया है, वह वैश्विक बदलाव का ही एक हिस्सा है. इस रिपोर्ट में भारत को 100 में से 67 नंबर दिए गए हैं. जबकि पिछले साल भारत को 100 में से 71 नंबर दिए गए थे.

सरकार ने आलोचकों पर कसा शिकंजा- रिपोर्ट

रिपोर्ट में भारत के नंबर कम करने के पीछे की वजह सरकार और उसके सहयोगी दलों की ओर से आलोचकों पर शिकंजा कसना बताया गया है. नागरिक स्वतंत्रता की रेटिंग में सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को पिछले साल के 60 में से 37 नबंर के मुकाबले इस साल 60 में से 33 नंबर दिए गए हैं. जबकि भारत में राजनीतिक अधिकारों पर दोनों सालों का स्कोर 40 में से 34 ही रहा

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रिपोर्ट में प्रवासी मजदूरों के पलायन का भी जिक्रइस रिपोर्ट में पिछले साल कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए भारत सरकार की तरफ से लगाए गए लॉकडाउन का भी जिक्र किया गया है. रिपोर्ट में लिखा है कि सरकार की तरफ से पिछले साल लागू किया गया लॉकडाउन खतरनाक था. इस दौरान लाखों प्रवासी मजदूरों को पलायन का सामना करना पड़ा.

195 देशों और 15 प्रदेशों पर हुई रिसर्च

बता दें कि ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड’ राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता पर एक वार्षिक वैश्विक रिपोर्ट है. इस रिपोर्ट में एक जनवरी 2020 से लेकर 31 दिसंबर 2020 तक 25 बिंदुओं को लेकर 195 देशों और 15 प्रदेशों पर रिसर्च की गई. बड़ी बात यह है कि रिपोर्ट में शामिल 195 देशों में से सिर्फ दो को ही सकारात्मक रेटिंग दी गई.

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