पितृ पक्ष में पशुओं को भोजन देकर पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है.या मोक्ष प्राप्ति के साधन, अब यहां सात समंदर पार से विदेशी अपने पितरों की मुक्ति के लिए गया में आ रहे हैं, पवित्र फल्गु नदी के तट पर स्थित देवघाट पर विदेशी पिंडदानियों ने पिंडदान किया.
हिंदू मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष के पखवाड़े हमारे पूर्वज धरती पर अवतरित होते हैं
पितृ पक्ष हर साल आश्विन महीने में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ हो जाता है और पितृपक्ष का समापन आश्विन मास की अमावस्या तिथि पर पर होता है। हिंदू मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष के पखवाड़े हमारे पूर्वज धरती पर अवतरित होते हैं. फिर उन्हें प्रसन्न करने के लिए पिंडदान, तर्पण, और श्राद्ध जैसे कार्य किए जाते हैं. इससे पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है और हम पितृदोष के बंधन से मुक्त होते हैं, पितरों के मोक्ष के लिए सभी लोग विधि व्यवस्था से पिंडदान करते हैं, इसके बाद पितृदोष से मुक्ति मिलती है.अब इसके प्रति विदेशियों की आस्था बढ़ती जा रही है.” स्वामी लोकनाथ गौड़, विदेशों में इस्कॉन मंदिर से जुड़े प्रचारक कहते हैं, इसके प्रति विदेशियों की आस्था बढ़ रही है. यही वजह है कि अफ्रीका, नाइजीरिया, कजाकिस्तान, यूक्रेन, रसिया, यमन से करीब 15 तीर्थ यात्री पहुंचे हैं.
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पिछले वर्ष 2023 में पितृपक्ष मेले में भी कई दर्जनों विदेशी तीर्थयात्री पिंडदान करने गया को पहुंचे थे. गया में पहुंचकर उन्होंने पिंडदान का कर्मकांड किया था. फल्गु तट, अक्षय वट और विष्णु पद में पिंडदान का कर्मकांड इनके द्वारा पूरा किया गया था.
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रिपोर्ट:- अमित कुमार सिन्हा