चुनाव आयोग ने 24 जून को घोषणा की कि बिहार में सभी ऐसे मतदाताओं को, जिन्होंने 2003 के बाद वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराया, अब अपनी नागरिकता और पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे। यह प्रक्रिया एक “विशेष गहन पुनरीक्षण” (Special Intensive Revision) के तहत की जा रही है।
विवाद और विरोध
- विपक्ष (कांग्रेस, RJD, भाकपा-माले आदि) ने इसे NRC जैसी प्रक्रिया बताते हुए विरोध किया
- आरोप: इससे दलित, मुस्लिम, गरीब और ग्रामीण समुदाय के लाखों लोग वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं
- ममता बनर्जी समेत अन्य नेताओं ने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए खतरनाक बताया
चुनाव आयोग की सफाई
- यह कदम लंबे समय से लंबित सुधारों का हिस्सा है
- प्रक्रिया पारदर्शी और सबके लिए समान रूप से लागू होगी
- सभी दस्तावेज़ ऑनलाइन जमा करने और शिकायत दर्ज कराने की सुविधा होगी
बिहार से शुरू हुई यह प्रक्रिया भारत के चुनावी ढांचे में बड़ा बदलाव ला सकती है। हालांकि, समय, दस्तावेज़ों की उपलब्धता और निष्पक्ष क्रियान्वयन जैसे बिंदुओं पर यदि सावधानी न बरती गई, तो यह निर्णय लोकतंत्र में भरोसे की कमी और राजनीतिक अस्थिरता का कारण बन सकता है।