बरसात से हुई धान नुकसानी का जिम्मेदार कौन

करोड़ों की धान पानी में


उमरिया (देशबन्धु )आखिर वही हुआ जिसका डर था , जिसके लिए लगातार खरीदी केन्द्रों के संचालकों, ने जिला प्रशासन से लगातार खरीदी के साथ -साथ उठाव का आग्रह करतीं रही, इस बात का पहले से पूर्वानुमान था कि खरीदी करने के बाद हम लोग उठाव के साथ पचड़े में न फंस जाये, मौसम विभाग ने भी पहले से ही बेमौसम बरसात होने का अनुमान बताया था, जिले भर के समाचार के माध्यमो से धान उठाव के सुस्तपन की खबरों से शासन -प्रशसन कों आगाह करने का प्रयास किया गया था , लेकिन हद है जिला प्रशासन की बेशर्मी का चाहें जो हो जाय प्रशासन अपने हाथी चाल से उबर नहीं सकता । यह कोई पहला मौका नहीं है जब जिला प्रशासन की कुभंकर्रणीय नींद में हो, बल्कि इन्होंने ऐसी सैकड़ों मिशाल खड़ी कर रखीं हैं, जिसके कारण शासन को प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष लंबी चपत झेलनी पड़ी है । यह बात अलग है कि इन सब पर न तो कभी जिला प्रशासन और न ही जिले के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों ने गौर करना उचित समझा। यही वजह है कि जिला प्रशासन की बेलगाम कार्य शैली शासन को आये दिन चपत लगातीं देखी जा रही है ‌।धान खरीदी मामले में ही देखा जाता है कि जिले भर में बरसात के कारण हुई धान की बरबादी में अरबों रुपए का चूना लगना तय है ,अब इसकी कीमत आखिर कार कौन चुकायेगा यह सवाल हर एक को झकझोर कर रख दिया है। ध्यान देने योग्य है कि शहडोल संभाग के उमरिया जिले का ही हिसाब लगाया जाये तो जिले में 42 खरीदी केन्द्रों में धान खरीदी का काम तेजी से जारी है जिसमें अब तक 12822 किसानों से 74746.3 मीट्रिक टन की धान खरीदी की गई थी। जिसमें से अब तक कुल 32131.1 मीट्रिक टन का उठाव किया गया है ,शैष 38001.1 धान खुले आसमान के नीचे रखी हुई है । धान खरीदी का काम जिले में सहकारी समितियों के माध्यम से की गयी है , जिसका भुगतान मध्यप्रदेश शासन कों करना है। विदित होवे कि जिले में धान खरीदी का काम भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता संघ ( एन सी सी एफ) के व्दारा किया जाना था , जिसमें धान की गुणवत्ता परीक्षण , वरदानों की उपलब्धता और उठाव का काम एन सी सी एफ को एजेंसी कों करना था, लेकिन इस एजेंसी की कारगुजारी से आज करोड़ों रुपयों की बरबादी हों गयी । अगर समय रहते धान का उठाव किया जाता तो इस समस्या से प्रशासन को आज दो चार नहीं होना पड़ता ।असमय हुई बारिश से खुले आसमान के नीचे रखी धान पर तिरपाल की पैबंद लगा कर सुरक्षित करने का सिलसिला भी तब चला जब धान बारिश से भींग गई। मान लिया जाए कि धान को तिरपाल से सुरक्षित कर लिया गया,तब भी उस तिरपाल का पानी नीचे से पहुंचकर धान को छति पहुंचा ही दिया ।
अब जब बरसात शुरू हो गई और खरीदी केन्द्रों की धान सत्यानाश हो गई तब जिला के कलेक्टर और अन्य अधिकारियों के व्दारा हाय-तौबा मचा रहें हैं , बीते दिवस कमिश्नर शहडोल भी मैदान में उतर गयी और मानपुर विकास खंड के विभिन्न खरीदी केन्द्रों में जाकर सूक्ष्मतम जांच पड़ताल कर आवश्यक निर्देश दी।इसी तरह सहायक पंजीयक सहकारिता विभाग एवं अन्य अधिकारियों ने अलग-अलग खरीदी केन्द्रों का भ्रमण किया। प्राथमिक सहकारी समिति के संभागीय संरक्षक सुरेन्द्र मिश्रा ने अधिकारियों के साथ खरीदी केन्द्रों का भ्रमण करते हुए वस्तुस्थिति से अवगत हुए । इस प्रकार देखा जाये तो जब सब कुछ हाथ से निकल गया,तब प्रशासन की कुभंकर्रणीय नींद टूटी । अवसर चूकें का पछताने की कहावत को चरितार्थ करती है, यही तत्परता अगर प्रशासन समय रहते करता तो यह दिन नहीं देखने को पड़ता । इस पूरे मामले में राज्य स्तरीय जांच कर वास्तविक दोषियों के ऊपर नुकसानी की भरपाई के निर्देश दे, अन्यथा निर्दोष को बलि का बकरा बनाकर सहकारी समितियों के ऊपर बोझ न लाद दिया जाये ।


उमरिया (देशबन्धु )आखिर वही हुआ जिसका डर था , जिसके लिए लगातार खरीदी केन्द्रों के संचालकों, ने जिला प्रशासन से लगातार खरीदी के साथ -साथ उठाव का आग्रह करतीं रही, इस बात का पहले से पूर्वानुमान था कि खरीदी करने के बाद हम लोग उठाव के साथ पचड़े में न फंस जाये, मौसम विभाग ने भी पहले से ही बेमौसम बरसात होने का अनुमान बताया था, जिले भर के समाचार के माध्यमो से धान उठाव के सुस्तपन की खबरों से शासन -प्रशसन कों आगाह करने का प्रयास किया गया था , लेकिन हद है जिला प्रशासन की बेशर्मी का चाहें जो हो जाय प्रशासन अपने हाथी चाल से उबर नहीं सकता । यह कोई पहला मौका नहीं है जब जिला प्रशासन की कुभंकर्रणीय नींद में हो, बल्कि इन्होंने ऐसी सैकड़ों मिशाल खड़ी कर रखीं हैं, जिसके कारण शासन को प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष लंबी चपत झेलनी पड़ी है । यह बात अलग है कि इन सब पर न तो कभी जिला प्रशासन और न ही जिले के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों ने गौर करना उचित समझा। यही वजह है कि जिला प्रशासन की बेलगाम कार्य शैली शासन को आये दिन चपत लगातीं देखी जा रही है ‌।धान खरीदी मामले में ही देखा जाता है कि जिले भर में बरसात के कारण हुई धान की बरबादी में अरबों रुपए का चूना लगना तय है ,अब इसकी कीमत आखिर कार कौन चुकायेगा यह सवाल हर एक को झकझोर कर रख दिया है। ध्यान देने योग्य है कि शहडोल संभाग के उमरिया जिले का ही हिसाब लगाया जाये तो जिले में 42 खरीदी केन्द्रों में धान खरीदी का काम तेजी से जारी है जिसमें अब तक 12822 किसानों से 74746.3 मीट्रिक टन की धान खरीदी की गई थी। जिसमें से अब तक कुल 32131.1 मीट्रिक टन का उठाव किया गया है ,शैष 38001.1 धान खुले आसमान के नीचे रखी हुई है । धान खरीदी का काम जिले में सहकारी समितियों के माध्यम से की गयी है , जिसका भुगतान मध्यप्रदेश शासन कों करना है। विदित होवे कि जिले में धान खरीदी का काम भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता संघ ( एन सी सी एफ) के व्दारा किया जाना था , जिसमें धान की गुणवत्ता परीक्षण , वरदानों की उपलब्धता और उठाव का काम एन सी सी एफ को एजेंसी कों करना था, लेकिन इस एजेंसी की कारगुजारी से आज करोड़ों रुपयों की बरबादी हों गयी । अगर समय रहते धान का उठाव किया जाता तो इस समस्या से प्रशासन को आज दो चार नहीं होना पड़ता ।असमय हुई बारिश से खुले आसमान के नीचे रखी धान पर तिरपाल की पैबंद लगा कर सुरक्षित करने का सिलसिला भी तब चला जब धान बारिश से भींग गई। मान लिया जाए कि धान को तिरपाल से सुरक्षित कर लिया गया,तब भी उस तिरपाल का पानी नीचे से पहुंचकर धान को छति पहुंचा ही दिया ।
अब जब बरसात शुरू हो गई और खरीदी केन्द्रों की धान सत्यानाश हो गई तब जिला के कलेक्टर और अन्य अधिकारियों के व्दारा हाय-तौबा मचा रहें हैं , बीते दिवस कमिश्नर शहडोल भी मैदान में उतर गयी और मानपुर विकास खंड के विभिन्न खरीदी केन्द्रों में जाकर सूक्ष्मतम जांच पड़ताल कर आवश्यक निर्देश दी।इसी तरह सहायक पंजीयक सहकारिता विभाग एवं अन्य अधिकारियों ने अलग-अलग खरीदी केन्द्रों का भ्रमण किया। प्राथमिक सहकारी समिति के संभागीय संरक्षक सुरेन्द्र मिश्रा ने अधिकारियों के साथ खरीदी केन्द्रों का भ्रमण करते हुए वस्तुस्थिति से अवगत हुए । इस प्रकार देखा जाये तो जब सब कुछ हाथ से निकल गया,तब प्रशासन की कुभंकर्रणीय नींद टूटी । अवसर चूकें का पछताने की कहावत को चरितार्थ करती है, यही तत्परता अगर प्रशासन समय रहते करता तो यह दिन नहीं देखने को पड़ता । इस पूरे मामले में राज्य स्तरीय जांच कर वास्तविक दोषियों के ऊपर नुकसानी की भरपाई के निर्देश दे, अन्यथा निर्दोष को बलि का बकरा बनाकर सहकारी समितियों के ऊपर बोझ न लाद दिया जाये ।

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