बंगाल’8 चरणों में चुनाव से किसका फायदा-किसका बिगड़ेगा खेल- जानें- एक्सपर्ट की राय….

चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में 8 राउंड में चुनाव कराने का फैसला लिया है, जबकि असम में तीन चरणों में वोटिंग होनी है। तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में एक ही राउंड में मतदान होना है। इसे लेकर पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी टीएमसी ने सवाल खड़े किए हैं कि आखिर बंगाल में तीन चरणों में मतदान क्यों कराया जाएगा।  इसे लेकर चुनाव आयोग के अधिकारियों का कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। अक्टूबर 2019 में महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव का उदाहरण देते हुए आयोग एक अधिकारी ने कहा कि यह फैसला राज्य चुनाव आयोग और कानूनी एजेंसियों की रिपोर्ट पर आधारित होता है। आयोग के एक अधिकारी ने कहा कि तब 288 सीटों वाले महाराष्ट्र और 90 सीटों वाले हरियाणा में एक ही राउंड में वोटिंग कराई गई थी, लेकिन 81 सीटों वाले झारखंड में 5 राउंड में वोटिंग हुई थी।

आयोग के अधिकारी ने कहा कि इसकी वजह कानून व्यवस्था की स्थिति झारखंड में अन्य राज्यों के मुकाबले अलग होना था। हालांकि यह बात भी साफ है कि इससे चुनाव लड़ रहे दलों को भी अपनी रणनीति तैयार करने में कुछ मदद मिलती है। बीजेपी के एक सीनियर लीडर ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि इससे राजनीतिक दलों को चुनावी रणनीति तैयार करने में मदद मिलती है।

एक अन्य लीडर ने कहा कि कई बार ग्राउंड पर स्थिति बदलती है तो पार्टियों को पर्याप्त समय सुधार के लिए मिल जाता है। दूसरे चरण के अनुसार पार्टियां अपनी रणनीति बदल लेती हैं और कई बार क्षेत्र के हिसाब से मुद्दों पर फोकस करते हुए आगे बढ़ती हैं।इसके अलावा पार्टी के कैडर में आंतरिक कलह से निपटने में भी मदद मिलती है। एक नेता ने कहा कि कई बार ऐसा होता है कि मत प्रतिशत कम रह जाता है। ऐसी स्थिति में पार्टी लीडरशिप अपने काडर को मोबिलाइज करती है कि कैसे वोटर्स का टर्नआउट बढ़ाया जाए।

हालांकि राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार थोड़ी अलग राय रखते हुए कहते हैं कि चरण अलग होने से ज्यादा पार्टियों को अपने पक्ष में बनी हवा का फायदा मिलता है। इसे ही लहर भी कहते हैं। वह कहते हैं, ‘इस बारे में सटीक जानकारी नहीं है कि आखिर कैसे चरणबद्ध चुनाव से नुकसान या फायदा होता है। लेकिन किसी राजनीतिक दल के पक्ष में हवा या फिर माहौल उसके खिलाफ है तो फिर चरणों में चुनाव होने या न होने से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।’

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