उत्तराखंड मूल निवास और भू कानून कुछ अनसुलझे…

उपरोक्त अभियान उत्तराखंड वासियों के लिए कितना सार्थक होगा यह तो वक्त ही बताएगा मगर भारतीय संविधान के सभी अनुच्छेदों का भारत के तमाम प्रदेश अनुसरण करते हैं और पाबंद हैं और नागरिकों के तमाम अधिकारो की गारंटी भारत के तमाम प्रदेश और संविधान उनको देता हैं तो फिर भारतीय नागरिकों का समानता का मौलिक अधिकार और भारत के किसी भी हिस्से में रहने और आजीविका अर्जित करने का अधिकार किस तरह उत्तराखंड में खत्म किया जा सकता हैं क्योंकि यह कहा जा रहा है कि पड़ोसी राज्यों से आकर उत्तराखंड प्रदेश की डेमोग्राफी बदल दी है और बाहरी लोगों ने सरकारी नौकरियों पर कब्जा कर लिया है और बाहरी लोग हमारा हक छीन रहे हैं इसलिए उत्तराखंड वासियों को हिमाचल की तर्ज पर सख्त भू कानून और सिर्फ मूल निवासियों को सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए और 2007 से स्थाई निवास के बिना पर जिन को सरकारी नौकरी मिली है उनकी नौकरी खत्म करके उनको बाहर निकालना चाहिए। मूल निवास के लिए अगस्त 1950 की कट ऑफ डेट जो लोग उत्तराखंड के सन 2000 के बने श्रेत्र में खुद या उनके बाप दादा रह रहे थे वो मूल निवासी हैं और उन्हीं का उत्तराखंड के संसाधनों पर पहला हक है बाहर के जो नागरिक यहां रह रहे है उनका उत्तराखंड के संसाधनों पर कोई हक नहीं है। क्या ज़बदस्त दलील है 1950 और उससे पहले से जो लोग उत्तर प्रदेश के संसाधनों वा राजनीतिक गलियारों का पूरी तरह से उपयोग कर रहे थे और उत्तरप्रदेश के ही 1950 में मूल निवासी थे वह अब उत्तर प्रदेश के नागरिकों को कह रहे हैं कि तुम बाहरी हो और तुम्हारा उत्तराखंड में कोई अधिकार नहीं है क्या विडंबना है कि उत्तर प्रदेश के जो नागरिक अपनी आजीविका कमाने के लिए उत्तराखंड में आकर बस गए और उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अपने और अपने परिवार को हटा लिया और उत्तर प्रदेश की अपनी सारी जमीन बेच दी अब वह ना उत्तर प्रदेश के मूल निवासी रहे और ना उत्तराखंड के मूल निवासी। मगर जो उत्तराखंड के वासी दूसरे प्रदेशों में निवासरत हैं नौकरी और कारोबार कर रहे हैं उनका हक उस प्रदेश के संसाधनों पर भी है और उत्तराखंड के मूल निवासी के हैसियत से उत्तराखंड के संसाधनों पर भी उनका हक विदित है। इस दोहरी और भेदभाव पूर्ण परिपाटी और नीति को भारतीय संविधान में प्रदत अधिकारो में सापेक्ष में देखे तो यह भारतीय संविधान का गंभीर उल्लंघन है। अब देखना यह है कि उत्तराखंड की धामी सरकार किस प्रकार इस नीति का समन्वय करती हैं यह बात कि बाहर के लोग उत्तराखंड वासियों की नौकरी खा गए हैं इसके लिए सरकार को बताना चाहिए कि कितने बाहर के लोग सरकारी नौकरी में हैं और कितने मौजूदा उत्तराखंड के लोग सरकारी नौकरियां कर रहे हैं। इसके अलावा सरकार को यह भी बताना चाहिए कि उत्तराखंड के कितने लोग भारत के दूसरे राज्यों में सरकारी नौकरियों में काम कर रहे हैं या कारोबार कर रहे हैं। सरकार को यह भी बताना चाहिए कि बाहर से आकर उत्तराखंड के कितने संसाधनों पर बाहरी लोगों ने कब्जा कर लिया है और इस सबके लिए उत्तराखंड सरकार को एक श्वेत पत्र लाना चाहिए तभी तो वास्तविकता सामने आएगी।

भारत को सुदृढ़ बनाने के लिए भेदभाव की नीति काम नहीं करेगी सब नागरिकों के हितों को ध्यान में रखकर समग्र विकास की तरफ बढ़ने से ही पूरे भारत वासियों का विकास हो सकता हैं अन्यथा भविष्य बहुत ज्यादा उज्ज्वल नहीं हैं। ऐसा न हो जिसकी लाठी उसी की भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो और भारत की फेडरल स्ट्रक्चर कमजोर हो जाए।

रिपोर्ट:- खुर्शीद अहमद

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