उत्तराखंड मदरसा और वक्फ बोर्ड मुसलमानों के विकास की गाड़ी के दो पहिए।

तिवारी जी की सरकार में अल्पसंख्यक के कई विभाग होते थे जिनके जरिए उत्तराखंड के अल्पसंख्यकों के लिए नई-नई नीतियों का अनुमोदन होता रहता था मगर आज की मौजूदा सरकार में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए केवल दो विभाग हैं एक मदरसा शिक्षा परिषद और दूसरा वक्फ बोर्ड। दोनों सालों से कार्यरत है और दोनों में सरकार द्वारा अध्यक्ष नियुक्त किए हुए हैं।

पहले विभाग जोकि मदरसों की शिक्षा परीक्षा और मान्यता के लिए जिम्मेदार हैं उनकी विभागीय मान्यता न होने के कारण दो सौ से अधिक मदरसे सील हो गए हैं और इन मदरसों में जो प्रारंभिक दीनी और स्कूली शिक्षा दी जाती थी वह सब वैकल्पिक व्यवस्था न होने के कारण रुक गई हैं और बच्चों की तालीम बैरवा वीरान हो गई हैं। इसके अतिरिक्त मदरसे मालिकों ने अभी मान्यता प्राप्त करने के लिए उचित क़दम नहीं उठाया है जबकि यह स्पष्ट हो चुका है कि उत्तराखंड में अब सिर्फ मान्यता प्राप्त मदरसे ही संचालित रहेंगे। तो मदरसा बोर्ड को भी आगे बढ़कर मान्यता के लिए इन मदरसों को अनसील कराकर मानकों के अनुसार इनको मान्यता देनी चाहिए ताकि बच्चों का शिक्षा ह्रास न हो। इसके अतिरिक्त मदरसा बोर्ड को उत्तीर्ण विद्यार्थियों के लिए दूसरे बोर्डों के समकक्ष प्रावधान पर सरकार से अति शीघ्र अनुमति लेनी चाहिए ताकि मदरसा बोर्ड से पढ़ने वाले विद्यार्थियों का भविष्य उज्ज्वल हो सके।

दूसरा विभाग, वक्फ बोर्ड की जिम्मेदारी है कि राज्य की वक्फ संपतियों की हिफाज़त करें अगर जरूरत हो तो न्यायालय में उनको बचाने के लिए मुकदमे लड़े। अभी हाल ही में वक्फ में दर्ज दून अस्पताल का वक्फ सरकार द्वारा तोड़ दिया गया। छबील बाग, लक्खी बाग, क्रासिंग सहस्त्रधारा रोड कब्रिस्तान और दूसरी वक्फ संपतियों में अध्यासित किराए दारो का किराया नवीनीकरण कर वक्फ इदारो का सुगम संचालन सुनिश्चित करें। लक्खी बाग में निर्मित मदरसा क्षेत्र वासियों के चंदे से उनके बच्चों की दीनी तालीम के लिए बनाया गया इदारा हैं अगर उसमें कुछ अनियमिताएं है तो उसको नियमित कर दीनी तालीम की व्यवस्था कराए। इसके अतिरिक्त लक्खी बाग में ही मुस्लिम नेशनल स्कूल का नाम बदलकर जो मॉडर्न मदरसा पिछले साल से शुरू करने का अज्म किया गया था और इस स्कूल पर प्राप्त जानकारी के अनुसार 25 लाख का बजट भी निर्गत किया जा चुका हैं इस परियोजना पर पिछले वर्ष से अब तक धरातल पर कोई काम होता नहीं दिख रहा हैं। ना ही मॉडर्न मदरसे की मान्यता है और न ही पढ़ाई हो रही हैं।

इसके अतिरिक्त वक्फ संपतियों पर कब्जे के संदर्भ में अभी तक वक्फ बोर्ड ने कोई सूची सार्वजनिक नहीं की है ताकि वक्फ के कब्जा धारकों का सामाजिक बहिष्कार हो सके। दोनों विभागों को अल्लाह की संपतियों और उम्मत की नई नस्ल की हिफाज़त की जिम्मेदारी प्रदान की गई है जिसका हिसाब किताब उस मालिक खालिक को भी देना पड़ेगा। इसलिए आपसी समन्वय से इस जिम्मेदारी को दोनों पूरा करेंगे तो शायद क़ौम का भला हो सकता हैं । गाड़ी को चलाने के लिए दोनों पहियों को गतिमान करना पड़ेगा।

खुर्शीद अहमद सिद्दीकी, 37, प्रीति एनक्लेव, माजरा, देहरादून।

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