मोदी सरनेम मामले में सुप्रीम कोर्ट 21जुलाई को करेगा सुनवाई,क्या राहुल को मिलेगी राहत………

आपको बता दें मोदी सरनेम मामले में सजा पाए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।और अब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस याचिका पर सुनवाई के लिए हामी भर दी है।सुप्रीम कोर्ट 21 जुलाई को इस मामले में सुनवाई करेगा।

दरसल राहुल गांधी को गुजरात की सूरत कोर्ट ने मोदी सरनेम को लेकर टिप्पणी करने के मामले में मानहानि का दोषी पाया था और उन्हें दो साल की जेल की सजा सुनाई थी। जिसके चलते राहुल गाँधी को लोकसभा सदस्यता गवानी पडी।

राहुल ने सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या दलीलें दी हैं आईए जानते है।

  1. मोदी’ एक अपरिभाषित अनाकार समूह: IPC की धारा 499/500 के तहत मानहानि का अपराध केवल एक परिभाषित समूह के मामले में लगता है। ‘मोदी’ एक अपरिभाषित अनाकार समूह है जिसमें लगभग 13 करोड़ लोग देश के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं और विभिन्न समुदायों से संबंधित हैं। ऐसे में आईपीसी की धारा 499 के तहत ‘मोदी’ शब्द व्यक्तियों के संघ या संग्रह की किसी भी श्रेणी में नहीं आता है।
  2. टिप्पणी शिकायतकर्ता के खिलाफ नहीं थी: रैली में ललित मोदी और नीरव मोदी का जिक्र करने के बाद ‘सभी चोरों का उपनाम एक जैसा क्यों होता है? ये टिप्पणी विशेष रूप से कुछ निर्दिष्ट व्यक्तियों को संदर्भित कर रही थी और शिकायतकर्ता, पूर्णेश ईश्वरभाई मोदी को उक्त टिप्पणी से बदनाम नहीं किया जा सकता है। मतलब ये टिप्पणी पूर्णेश मोदी को लेकर नहीं की गई थी। इसलिए उनके आरोप गलत हैं।
  3. बदनाम करने का कोई इरादा नहीं: टिप्पणी 2019 के लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान दिए गए एक राजनीतिक भाषण का हिस्सा थी। इसके जरिए शिकायतकर्ता को बदनाम करने का कोई इरादा नहीं था। इसलिए अपराध के लिए मानवीय कारण का अभाव है।
  4. अपराध में कोई नैतिक अधमता शामिल नहीं: अपराध में कोई नैतिक अधमता शामिल नहीं है। शब्द “नैतिक अधमता” प्रथम दृष्टया ऐसे अपराध पर लागू नहीं हो सकता जहां विधायिका ने केवल दो साल की अधिकतम सजा का प्रावधान करना उचित समझा। यह अपराध जमानती और गैर-संज्ञेय भी है और इसलिए इसे “जघन्य” नहीं माना जा सकता।
  5. उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने के लिए बुनियादी मानदंडों की अनदेखी की:
    सजा के निलंबन के दो मजबूत आधार बन सकते हैं। (1) इसमें कोई गंभीर अपराध शामिल नहीं है जो मौत, आजीवन कारावास या एक अवधि के कारावास दस साल से कम दंडनीय है। (2) शामिल अपराध में नैतिक अधमता शामिल नहीं होनी चाहिए। याचिकाकर्ता के मामले में ये दोनों शर्तें पूरी होती हैं। फिर भी उच्च न्यायालय ने अपराध को नैतिक अधमता से जुड़ा हुआ मानकर दोषसिद्धि को निलंबित नहीं करने का निर्णय लिया।
Share
Now