गुम हो गई वो महक: कभी विदेशों तक थे देहरादून के बासमती के चर्चे……

कभी पछवादून अपने देसी बासमती (देहरादून का बासमती) से महका करता था। अपनी खुशबू और स्वाद के कारण इस देहरादून के बासमती चावल की इस प्रजाति ने देश-विदेश में अलग पहचान बनाई। तेजी से होने वाले शहरीकरण, सही मार्केटिंग की कमी, और अन्य प्रजातियों के विकसित होने के कारण, धीरे-धीरे यह प्रजाति लुप्त हो गई। आजकल, इस बासमती के बीज को ढूंढना भी मुश्किल हो रहा है।
पछवादून क्षेत्र के सोरना, तिलवाड़ी, दुधई, बिरसनी और सेवला माजरा क्षेत्र में खेत देहरादून की बासमती से लहलहाया करते थे। आज से करीब 10 वर्ष पूर्व तक, क्षेत्र में करीब 4-5 हजार हेक्टेयर में इसकी खेती होती थी। स्वाद और खुशबू के कारण यह ग्राहकों की पहली पसंद होती थी। लेकिन धान की अन्य प्रजातियों के विकसित होने के साथ ही, देहरादून की पुराने बासमती की प्रजाति गुम होती जा रही है। धीरे-धीरे, किसानों ने इसके बीज को संरक्षित करना बंद कर दिया, जिसके कारण यह धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। देहरादून के पुराने बासमती के बीज किसान स्वयं संरक्षित करते थे। जलवायु परिवर्तन और फसल की लंबाई अधिक होने के कारण, किसानों का धीरे-धीरे नई प्रजातियों की ओर रुझान बढ़ गया और देहरादून की बासमती धीरे-धीरे गायब हो गई।

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