उत्तराखंड सरकार द्वारा चार जिलों में 17 स्थानों के नाम बदलने के फैसले के बीच जन अधिकार पार्टी जनशक्ति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अभिषेक बहुगुणा ने एक संतुलित और प्रगतिशील स्टैंड पेश किया है। इस कदम को लेकर चल रही सियासी बहस में बहुगुणा ने न केवल अपनी बौद्धिक क्षमता का परिचय दिया, बल्कि राज्य के विकास और सामाजिक एकता को प्राथमिकता देने वाला एक ठोस रोडमैप भी प्रस्तुत किया।
अभिषेक बहुगुणा ने कहा, “हम उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करते हैं। यदि नाम बदलना जनभावनाओं से जुड़ा है, तो यह पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से होना चाहिए।” उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार हर प्रभावित क्षेत्र में जनमत-संग्रह कराए और सभी समुदायों की सहमति ले, ताकि फैसले सर्वमान्य हों।
बहुगुणा ने नाम बदलने के संभावित सामाजिक प्रभावों पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “औरंगजेबपुर का शिवाजी नगर बनना स्वीकार्य हो सकता है, लेकिन मोहम्मदपुर जट जैसे नामों को बदलने से पहले स्थानीय लोगों की राय और ऐतिहासिक संदर्भ को समझना जरूरी है।” इसके लिए उन्होंने एक ‘सामुदायिक सहमति समिति’ के गठन का प्रस्ताव रखा, जो सभी समुदायों के बीच संवाद सुनिश्चित करे।
अभिषेक बहुगुणा ने जोर देकर कहा कि नाम बदलने से ज्यादा जरूरी राज्य का विकास है। “नए नामों के साथ इन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं—like सड़क, स्कूल, और अस्पताल—भी लानी चाहिए। पलायन और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर ध्यान देना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए,” उन्होंने कहा।
बहुगुणा ने अपनी पार्टी के अभियान ‘सहमति और विकास’ की घोषणा की, जिसके तहत वे प्रभावित क्षेत्रों में जाकर लोगों की राय लेंगे और उनकी समस्याओं को उठाएंगे। “हमारा मंत्र है—’नाम से ज्यादा काम, एकता से विकास’,” उन्होंने कहा।
बहुगुणा का यह स्टैंड सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। जहां बीजेपी इसे संस्कृति से जोड़ रही है और कांग्रेस ने इसे नाकामी छिपाने का प्रयास बताया, वहीं बहुगुणा का रुख दोनों से अलग एक रचनात्मक दृष्टिकोण पेश करता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम जन अधिकार पार्टी को उत्तराखंड में मजबूत स्थिति दे सकता है।
अभिषेक बहुगुणा ने सरकार को चुनौती देते हुए कहा, “हम जनता के साथ हैं और उनकी आवाज को बुलंद करेंगे।” उनका यह बयान न केवल उनकी नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है, बल्कि उत्तराखंड की राजनीति में एक नई सोच का संकेत भी देता है।