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सपा प्रसपा का आपस में विलय। क्या दिल भी मिले ? फिर से मजबूत होकर आएंगे अखिलेश या खटास रहेगी बरकरार ! जाने….

मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव से सपा- प्रसपा के विलय को लेकर शुरू हुई कवायद आखिरकार चुनाव परिणाम से साथ परवान चढ़ी। अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह को पार्टी का झंडा थमाया। शिवपाल की गाड़ी से प्रसपा का झंडा उतारकर सपा का झंडा लगा दिया गया। अब भविष्य में पार्टी केअंदरखाने में भी कई तरह के बदलाव दिखेंगे।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में रिकार्ड मतों से मिली जीत का तोहफा शिवपाल सिंह को दिया है। उनकी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का अब सपा में विलय हो गया है। अखिलेश यादव ने कहा कि उनकी पार्टी का विलय होने से ताकत बढ़ी है। अब किसानों, नौजवानोंके मुद्दे पर संषर्घ होगा।

मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव से सपा- प्रसपा के विलय को लेकर शुरू हुई कवायद आखिरकार बृहस्पतिवार को चुनाव परिणाम से साथ परवान चढ़ी। अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह को पार्टी का झंडा थमाया। शिवपाल की गाड़ी से प्रसपा का झंडा उतारकर सपा का झंडा लगा दिया गया। अब भविष्य में पार्टी केअंदरखाने में भी कई तरह के बदलाव दिखेंगे। शिवपाल केसाथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले उनकी पार्टी के नेताओं का सपा में समायोजन होगा। उन्हें संगठन में जिम्मेदारी मिलने की उम्मीद है। ऐसे में प्रसपा के नेताओं में खुशी है कि उनकी सम्मानजनक तरीके से वापसी हो रही है। क्योंकि वे निरंतर खुद को मुलायम सिंह यादव केअसली अनुयायी होने की दुहाई देते रहे हैं। अखिलेश यादव ने ऐलान किया कि चाचा की पार्टी का विलय करते हुए खुशी हो रही है। अब किसानों, नौजवानों के मुद्दे पर संघर्ष किया जाएगा।

शिवपाल को मिलेगी जिम्मेदारी
सपा- प्रसपा के विलय के बाद शिवपाल सिंह यादव को पार्टी में अहम जिम्मेदारी मिलने की चर्चा है। हालांकि मैनपुरी में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस सवाल को मुस्कुराते हुए टाल दिया है। फिर भी कयास लगाए जा रहे हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले शिवपाल सिंह यादव को संगठन अथवा विधायक दल में जिम्मेदारी मिल सकती है।

दूरियां बढ़ाने वालों को करना होगा चिन्हित
सपा- प्रसपा का विलय हो गया है। ऐसे में सपा शीर्ष नेतृत्व के आसपास रहने वाले कुछ नेताओं में खलबली साफ दिख रही है। वे इस पशोपेश में हैं कि उनका भविष्य क्या होगा? खास बात यह है कि उन नेताओं के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही हैं, जिन्होेंने चाचा-भतीजे के बीच निरंतर दूरियां बढ़ाने का प्रयास किया। कई नेता ऐसे भी थे, जिन्होंने भरे मंच से शिवपाल सिंह के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया। इतना ही नहीं मार्च में विधानसभा चुनाव में मिली हार केलिए शिवपाल सिंह यादव को जिम्मेदार ठहराने से भी नहीं चूके। ये नेता यह कहते फिर रहे थे कि इटावा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, कन्नौज, फिरोजाबाद सहित आसपास के इलाके में सीटें हारने की बड़ी वजह शिवपाल बने थे। ऐेसे में अब इन नेताओं की मुसीबत बढ़ना भी तय है। हालांकि शिवपाल सिंह यादव का कहना है कि बीती बात को बिसार देना ही अच्छा होता है। शिवपाल भले कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन सपा की सियासी नब्ज पर नजर रखने वालों का साफ कहना है कि पार्टी में अखिलेश- शिवपाल के बीच दूरियां बढ़ाने वालों को चिन्हित करना होगा। ऐसे तत्वों से दोनों को सावधान होना होगा। चिन्हित करने के लिए दोनों को किसी नए फार्मूले की तलाश भी नहीं करनी है बल्कि वे साथ-साथ बैठे और मिलकर गलफहमी पैदा करने वालों को चिन्हित करें।

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