कुछ लोग पहचान के मोहताज नहीं होते मानवता की सेवा के साथ भारत का वह सर्वोच्च सम्मान जीवन के अंतिम पड़ाव में जाते-जाते अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गई डॉ. भक्ति यादव…

मध्य प्रदेश की पहली महिला डॉक्टर_डॉ. भक्ति यादव, मरते दम तक निःशुल्क करती रहीं…

                                                                     इंदौर में रहने वाली डॉक्टर दादी एक ऐसा नाम है जिसे इंदौर शहर में शायद ही कोई ऐसा हो जो ना जानता हो. जी हां...हम बात कर रहे हैं 91 साल की गायनकोलाजिस्ट डॉक्टर भक्ति यादव की जो इंदौर में डॉक्टर दादी के नाम से भी पहचानी जाती थीं।                                                     भक्ति यादव  एक भारतीय डॉक्टर थीं, जो भारत के इंदौर से पहली महिला एमबीबीएस थीं और उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक, पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। वह अपनी उदारता के लिए जानी जाती थीं, जिसमें 1948 से मुफ्त इलाज की पेशकश भी शामिल थी, वह एक स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं।

मध्य प्रदेश की पहली महिला डॉक्टर_डॉ. भक्ति यादव, मरते दम तक निःशुल्क करती रहीं इलाज, 1 लाख से ज्यादा करवाई थी डिलिवरी। उन्हें डॉक्टर दादी के नाम से भी जाना जाता था, वर्ष 1952 में भक्ति यादव मप्र की पहली महिला एमबीबीएस डॉक्टर बनीं.
डॉक्टर भक्ति यादव भारत की एक समाजसेवी चिकित्सक थीं। वे निर्धन लोगों की निःशुल्क चिकित्सा करतीं थीं। उन्हें वर्ष 2017 मे पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। आपको बता दें कि अधिक उम्र होने की वजह से डॉक्टर उस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकी थीं अतः नियमानुसार इंदौर कलेक्टर ने उन्हें उनके घर पर जा कर पुरुस्कार प्रदान किया था।

जब लड़कियों को शिक्षा दिलाना बुरा माना जाता थ…

भक्ति यादव का जन्म 3 अप्रैल 1926 को उज्जैन के पास महिदपुर में हुआ। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध परिवार से थीं। 1937 में जब लड़कियों को शिक्षा दिलाना बुरा माना जाता था उस काल में भक्ति यादव ने पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उनके पिता ने पास के गरोठ कस्बे में भेज दिया जहाँ सातवीं तक उनकी शिक्षा हुई। इसके बाद भक्ति के पिता इंदौर आये और अहिल्या आश्रम स्कूल में उनका दाखिला करवा दिया। उस वक्त इंदौर में वो एक मात्र लड़कियों का स्कूल था, जहां छात्रावास की सुविधा थी। यहां से 11वीं करने के बाद उन्होंने 1948 में इंदौर के होल्कर साईंस कॉलेज में प्रवेश लिया और बीएससी प्रथम वर्ष में कॉलेज में अव्वल रहीं
महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (एमजीएम) में एमबीबीएस का पाठ्यक्रम था। उन्हें 11वीं के अच्छे परिणाम के आधार पर दाखिला मिल गया। कुल 40 एमबीबीएस के लिय चयनित छात्र में 39 लड़के थे और भक्ति अकेली लड़की थीं। भक्ति एमजीएम मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस की पहली बैच की पहली महिला छात्र थीं। वे मध्यभारत की भी पहली एमबीबीएस डॉक्टर थी। 1952 में भक्ति एमबीबीएस डॉक्टर बन गई। आगे जाकर भक्ति ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज से ही एमएस किया।

आज की तरह संसाधन और बिजली नहीं थी

डॉ॰भक्ति को अस्टियोपोरोसिस नामक खतरनाक बीमारी हो गई थी जिसकी वजह से उनका वजन लगातार घटते हुए मात्र 28 किलो रह गया था। डॉ॰भक्ति को उनकी सेवाओं के लिए डॉ. मुखर्जी सम्मान से भी नवाजा गया था,14 अगस्त 2017 सोमवार को इंदौर में अपने घर पर उन्होंने आखिरी सांस ली। पीएम मोदी समेत देश के तमाम लोगो ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की थी। पीएम ने लिखा था…”भक्ति यादव का दुनिया से चले जाना दुखद है। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार के साथ हैं। उनका काम हम सबके लिए एक प्रेरणा है।”
लालटेन की रोशनी में करवाई थी डिलेवरी :
उस दौर में आज की तरह संसाधन और बिजली नहीं थी। कई बार ऐसे हालात बने कि उन्हें बिजली के बगैर डिलेवरी करवानी पड़ी। ऐसे में मोमबत्ती और लालटेन का सहारा लेना पड़ता था।

यह खुशी तब और बढ़ जाएगी जब पहले की तरह मरीज डॉक्टर पर भगवान जैसा भरोसा करने लगे..

                                                                 डॉक्टर भक्ति यादव को चिकित्सा के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिए पद्मश्री से नवाजा गया था।भक्ति ने 64 साल के करियर में एक लाख से ज्यादा डिलेवरी करवाईं थी। सरकार ने इस उपलब्धि के लिए उन्हें जनवरी में पद्मश्री से नवाजा था। उनकी आखिरी इच्छा सांस छूटने तक काम करने की थी। इसीलिए बीमार रहने के बाद भी अकसर मरीजों को देखती थीं।

पदमश्री पुरस्कार मिलने पर डॉक्टर भक्ति ने कहा था कि, अवॉर्ड मिलने की खुशी है, लेकिन यह खुशी तब और बढ़ जाएगी जब पहले की तरह मरीज डॉक्टर पर भगवान जैसा भरोसा करने लगे। इसके लिए डॉक्टरों को इलाज के वक्त मरीज से ऐसा रिश्ता बनाना होगा।इंदौर की डॉक्टर दादी ने वर्षों तक लोगों को इसी तरह हैरान किया. उन्होंने अपने जीवन में लगभग डेढ़ लाख बच्चों को जीवन दिया. सबसे ज्यादा डिलीवरी कराने का गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी उन्हीं के ही नाम पर है!

रिपोर्ट:-अमित कुमार सिन्हा

Share
Now