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शिमला : सिंजौली मस्जिद विवाद अवैध निर्माण का आरोप क्या सिर्फ पूरे शहर में एक ही निर्माण…..

हिमाचल प्रदेश के शिमला में सभी राजनीतिक दलों जिसमे कांग्रेस, बीजेपी, संघ परिवार के घटक, हिंदू समाज के पुरुष, महिलाएं और नौजवान सब एक भीड़ बनाकर एक मस्जिद को तोड़ने के लिए सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं जिससे यह प्रतीत होता है कि शिमला में अगर कोई धार्मिक स्थल अवेध है तो बस यह मस्जिद ही है जिसको तोड़ने के लिए हिंदू समाज को आंदोलन करना पड़ रहा है और इसके बाद शिमला में सब बाकी वैध हो जायेगा अगर शिमला वासी वैध अवैध की बात करते हैं तो अपने धार्मिक स्थलों की भी वेधता जांच लें और तमाम अवेध संरचनाओं के खिलाफ आंदोलन करें तो शायद इंसाफ की बात है इन हालात में मुकदमे का फैसला आज क्या आयेगा यह भी सबको एहसास है क्योंकि अब डेमोक्रेसी का दौर खत्म हो चुका है बल्कि मौजूदा दौर मोबोकेरेसी का दौर है जिसकी लाठी उसकी भैंस।

वैध धार्मिक स्थल बनाने के लिए प्रशासन से इजाजत लेने का प्रावधान है यह इजाज़त कितने धार्मिक स्थलों के पास हैं जांच से ही पता लग सकता है मगर शायद ही किसी के पास हो। नक्शा पास होना तो दूर की कोड़ी के समान है सबसे ज्यादा जरूरी इसमें ज़मीन की मिल्कियत है जो इस्लामी शरीयत के अनुसार सबसे जरूरी चीज है कि जहां पर मस्जिद, मदरसे या किसी भी इबादत गाह की तामीर ऐसी ज़मीन पर होनी चाहिए जहां पर किसी प्रकार का झगड़ा न हो झगड़े की जगह पर इबादत गाह बनाना जायज नहीं है इस मामले में शिमला की मस्जिद कमेटी ही बेहतर बता सकती हैं कि मस्जिद की मिलकियत क्या है

पिछले कई दिनों से चल रहे आंदोलन में कई मुद्दे सामने आए एक तो हिमाचल और उत्तराखंड से लगे उत्तर प्रदेश से आए बाहरी लोगो, छोटे कारोबारियों, फढ़ी लगाने वालो से देवभूमि की डेमोग्राफी बदल गई है और उनकी आड़ मेंऔर बहुत से बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान देवभूमि में आकर बस गए हैं और बहुत से गांवों कस्बों में जनसंख्या अनुपात बढ़ने से हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं और बाहर से आए मुसलमान लड़के लव जिहाद कर रहे हैं जन संख्या अनुपात बदलने की वजह से मस्जिद मदरसों का निर्माण हो गया है और अगर कुछ दिन इसी प्रकार चला तो जिहादी देवभूमि का इस्लामीकरण कर देंगे और इस झूठ को इतना फैलाया गया कि जनता ही क्या सरकार भी इसको एक नीति का हिस्सा मानती है और इसके खिलाफ धर्म परिवर्तन कानून, लैंड जिहाद लव जिहाद कानून, जनसंख्या कानून बनाने के लिए तत्पर हैं और यह तर्क दिए जा रहे हैं कि देवभूमि की संस्कृति बचाने के लिए सरकार कोई भी कानून बनाने के लिए तैयार हैं अब सवाल यह है कि देवभूमि में अल्पसंखियक समाज खासकर मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध क्या संविधान के अनुरूप अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं या सरकार इस मोबोकेरेसी के चलते कानूनी तौर से इनका संवेधनिक हक खत्म करने के लिए तत्पर हैं इस कड़ी में उत्तराखंड सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की सुबह शाम की शाखाओं में जाने की अनुमति दे दी है और इसको सरकारी नौकरी नियमावली के उल्लंघन से मुक्त कर दिया है जबकि पिछले दशकों में आरएसएस पर सरकार ने बैन लगाया था अब यह सब कैसे संविधानिक हो गया है इसकी व्याख्या की जरूरत है। इन सब बातों की मद्देनजर अल्पसंखियक समाज को अपनी मौलिक वा धार्मिक आजादी के बारे में विचार करना चाहिए कि इसमें अपनी धार्मिक अस्मिता को कैसे बचाए। यह संकट सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं है ईसाई और दलित भी इससे अछूते नहीं हैं लगता यह है कि भारतवर्ष का हिंदू समाज अब दोबारा से मनुवाद को लागू करने के लिए लामबंद हो रहा है ताकि हिंदूवाद का एकाधिकार कायम हो सके।

खुर्शीद अहमद

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