सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीन तलाक कानून के तहत अब तक पंजीकृत एफआईआर और दायर की गई चार्जशीट की कुल संख्या का हलफनामा मांगा है। यह अधिनियम, जिसे ट्रिपल तलाक (तीन तलाक) को अपराध मानते हुए लागू किया गया था, मुस्लिम महिलाओं को पति द्वारा एकतरफा रूप से तलाक देने से बचाने के लिए है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह जानकारी देने को कहा है कि अब तक इस कानून के तहत कितनी एफआईआर मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ दर्ज की गई हैं और कितनी चार्जशीट दायर की गई हैं। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई मार्च में निर्धारित की है।
वही, इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही एक साथ 3 तलाक को अमान्य करार दे चुका है। सरकार को इसके लिए सजा का कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं थी। एक साथ 3 तलाक बोलने के लिए 3 साल की सजा बेहद सख्त कानून है। पति के जेल चले जाने से पत्नी की कोई मदद नहीं होगी।
बता दे की सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. उन्होंने शायर साजिद सजनी लखनवी का शेर पढ़ते हुए कहा, ‘तलाक दे तो रहे हो इताब-ओ-कहर के साथ, मेरी जवानी भी लौटा दो मेरी महर के साथ।’ आमतौर पर माना जाता है कि ये शेर पाकिस्तान की मशहूर शायर परवीन शाकिर का है, लेकिन रेख्ता पर मौजूद जानकारी के अनुसार यह शेर साजिद सजनी लखनवी का है।
एडवोकेट निजाम पाशा ने कहा कि इस तरह मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव हो रहा है क्योंकि किसी और समुदाय में पत्नी को छोड़ने को अपराध नहीं माना जाता है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक और वकील सीनियर एडवोकेट एमआर शमशाद ने कहा कि इस मामले को पहले से मौजूद घरेलू हिंसा कानून के तहत देखा जा सकता है और अलग से कानून बनाने की जरूरत नहीं है. उन्होंने तर्क दिया, ‘शादीशुदा रिश्तों में अगर पत्नी को मारा-पीटा जाए तो महीनों तक एफआईआर दर्ज नहीं होतीं, लेकिन यहां सिर्फ तलाक बोलने पर मामले दर्ज हो रहे है।’ इस पर एसजी मेहता ने कहा कि किसी और समाज में ऐसी प्रथा नहीं है।
रिपोर्ट:- कनक चौहान