संजीव कुमार सिंह ने लौह पुरुष आडवाणी को 95वें जन्मदिन पर दी हार्दिक शुभकामनाएं,जाने क्या कहा….

लौह पुरुष आडवाणी जी को 95वें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

यूपी। राष्ट्रीय नेता, इंडियन नेशनल कांग्रेस एआईसीसी पर्यवेक्षक प्रभारी, बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, सदस्य इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट्स सचिव, कांग्रेस किसान एवं औद्योगिक प्रकोष्ठ, कानूनी सलाहकार सदस्य, चुनाव प्रचार समिति बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल और आसाम एवं लोकसभा चुनाव 2024 में प्रधानमंत्री पद के दावेदार ठाकुर संजीव कुमार सिंह ने कहा कि लाल कृष्ण अडवाणी जी को 95वें जन्म दिन की बहुत – बहुत शुभकामनाएं। आप शतायु हो और भारत की दशा और दिशा भीष्म पितामह की तरह देखते रहे। आज माननीय लाल कृष्ण अडवाणी जी ने अपने जीवन के 94 वर्ष पूरे कर लिए है। इस अवसर पर मैं उन्हें जन्म दिन की शुभकामनाऐ देते हुऐ उनकी अच्छी सेहत व शतायु होने की ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ ताकि वह देख सके कि उनके द्वारा रोपा गया वटवृक्ष कितना फल फूल रहा है और कैसे सुदंर फल दे रहा है। आडवाणी जी के राजनैतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1951 से हो गई थी और 2014 तक वह देश की प्रमुख राजनीतिक हस्ती रहे है ।अपने राजनैतिक जीवन के उत्कर्ष में उन्होंने बहुतों का राजनैतिक जीवन बनाया हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के भी आडवाणी जी गुरू रहे है और उन्हीं की छत्र छाया व बताये गये रास्ते पर चलकर ही वह इस पद पर पहुँचे हैं । हालाँकि वह खुद प्रधानमंत्री नहीं बन सके जिसकी कसक उन्हे आख़िरी समय तक सालती रहेगी। आडवाणी जी का राजनैतिक सफ़र लगभग 63 साल का रहा है और अपने इस लंबे राजनीतिक जीवन की उपलब्धि के नाम पर उन्होंने देश को क्या दिया है तो मुझे कुछ नज़र नहीं आता । यह ज़रूर है कि उन्होंने अपनी भारतीय जनता पार्टी को फ़र्श से अर्श तक पहुँचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। आडवाणी जी के जीवन की एकमात्र उपलब्धि मैं राम जन्म भूमि आंदोलन को एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की मानता हूँ। पर क्या भगवान राम के प्रति श्रद्धा और भक्ति ने इन्हें प्रेरित किया था कि बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कराकर वहॉ भगवान राम का मन्दिर बनना चाहिये। क्या आम जन व स्वयं की धार्मिक भावनाओं के कारण इन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस व उस स्थान पर राम मन्दिर के निर्माण के लिये स्वयं को समर्पित किया था। मैं समझता हूँ कि नही ऐसी भावनाऐ कभी नहीं रही। माननीय आडवाणी जी के लिये बाबरी मस्जिद का विध्वंस व उस स्थान पर भगवान राम के मन्दिर का निर्माण कराना मात्र राजनैतिक मक़सद था। अगर हम याद करें कि 1980 में बीजेपी अपनी स्थापना से लेकर सन 1987 तक एक मृत प्रायः पार्टी थी। विहिप वाले ज़रूर रामजन्म भूमि का ताला खोलने के लिये आवाज़ें उठाते रहते थे। यदि राजीव गॉधी राम जन्म भूमि का ताला नहीं खुलवाते तो शायद बीजेपी अबतक भी अपने पैरों पर नहीं खड़ी हो पाती। राम जन्म भूमि का ताला खुलने से बीजेपी को जैसे संजीवनी मिल गई और फ़ौरन आडवाणी जी एवं अन्य हिंदू वादी नेताओं ने इसे लपक लिया। कांग्रेस के साथ दिक़्क़त थी कि वह ताला खुलवाने के बाद भी इसे धार्मिक रंग देकर जनता की भावनाओं को नहीं उभार सकती थी।आडवाणी जी ने रामजन्म भूमि के मुद्दे को पूरे ज़ोर शोर से उठाकर जनता की धार्मिक भावनाओं को अपनी पार्टी के पक्ष में भुनाने का अभियान छेड़ दिया। रथ यात्रा का निकालना, और बाबरी मस्जिद का विध्वंस उसी अभियान का सिलसिलेवार हिस्सा थे। आडवाणी जी ने इस बात की बिल्कुल परवाह नहीं की उनके इस अभियान से देश में साम्प्रदायिक दंगे भड़क सकते है, लोगों की क़ीमती जाने जा सकती है, देश का भाईचारा ख़त्म हो सकता है, देश की आर्थिक स्थिति बर्बाद हो सकती है और देश की तरक़्क़ी रूक सकती है। रथ यात्रा, बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद देश के एक बड़े हिस्से में दंगे भड़के और सैकड़ों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। कार सेवको पर भी गोलियाँ चलाई गई और कई गरीब परिवारों के बच्चे मारे गये। गुजरात के दंगों के पीछे भी यही कारण थे। देश का साम्प्रदायिक भाई चारा को जितनी चोट माननीय आडवाणी जी ने दी है उसके ज़ख़्म कब तक भरेंगे कहना मुश्किल है। आडवाणी जी कितने धार्मिक है मैं यह तो नहीं जानता पर धार्मिक भावनाओं को उभारना और उनसे खेलना बहुत अच्छी तरह जानते थे। आडवाणी जी की इस मेहनत से पार्टी बहुत अच्छी तरह फली फूली और केन्द्र की सत्ता के साथ-साथ कई राज्यों की सत्ता पर भी क़ाबिज़ हो गई। आडवाणी जी स्वयं लौह पुरुष बन गये थे। आडवाणी जी ने समझ लिया था कि कट्टर हिंदुत्व ही सत्ता की चाभी है और जब तक सक्रिय रहे इसी नीति पर चलते रहे । यह बात दीगर है कि उनके निस्तेज होते ही सत्ता की वह चाभी उनसे छीन ली गई क्योंकि यही राजनिति का उसूल है कि जिस सीढ़ी पर चढ़कर आप ऊपर पहुँचते हैं उसे लात मारकर गिराना ज़रूरी है। क्या कभी श्री आडवाणी जी ने कल्पना भी की होगी कि जिस मन्दिर के निर्माण के लिये उन्होंने इतना कुछ किया है उन्हें उस मन्दिर के शिलान्यास समारोह में आमंत्रित करने लायक भी नहीं समझा जायेगा ? शायद कर्म फल इसी को कहते है। खैर, कलयुग के गुरु द्रोणाचार्य के लिये कलयुग का शिष्य एकलब्य अंगूठा देने वाला नहीं, अंगूठा दिखाने वाला सावित हुआ। द्वापर में जिस छल से बिना दीक्षा दिये गुरु दक्षिणा में उस शिष्य का जिसने मानसिक रूप मात्र से गुरू माना, उसका अंगूठा छीनकर उसको धनुर्विद्या में अयोग्य बना दिया। आज उसी एकलब्य ने कलयुग में बदला लेकर सारी गुरूता नष्ट कर कबाड़खाने में पहुंचा दिया। कलयुग के गुरु द्रोणाचार्य को 94 बर्ष पूर्ण करने की हार्दिक बधाई। आडवाणी जी को लंबी उम्र मिले और वो “सबकुछ” देखें। 95 वे साल की इस उम्र में शिष्य एकलब्य द्वारा पहुंचाये गये कष्ट के प्रति सहानुभुति एवं सहन करने की शक्ति के लिये ईश्वर से शुभकामनायें।

Share
Now