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रबीउल अव्वल का पैग़ाम

रबीउल अव्वल का महीना जिसमे हमारे प्यारे नबी मोहम्मद स अ वा की यौम पैदाइश को बड़े धूम धाम से मनाया जाता है सीरत नबी वा जश्ने नबी के अनवान से जगह जगह जलसे जलूस होते हैं और प्यारे नबी से अपनी अकीदत का इज़हार किया जाता है।

प्यारे नबी आए तो मक्के में राइज रसूमात को सबसे पहले खत्म किया और एक ऐसे माशरे की तश्कील दी जो प्यारे नबी की एक एक बात पर, एक एक सुन्नत पर अमल करता था।

मतलब रसूमात खत्म और सुन्नतो पर अमल शुरू। हमने इसके बरअक्स सारी रसूमत अपनी जिंदगी मे जारी वा सारी की हुई है।

शायद पैग़ाम राबिउल अव्वल यही है कि उम्मत को अब अल्लाह के कलाम यानी कुरान करीम और प्यारे नबी की सुन्नतों पर मजबूती से अमलपैरा होना है तो गुमराह नही हो सकते।

यही प्यारे नबी के हज्जातुल विदा के खुतबे का निचोड़ था और यही हमारे लिए पैग़ाम था जिसके लिए प्यारे नबी ने आसमान की तरफ निगाह उठा कर कहा कि अल्लाह तू गवाह रहना मैने इन सब तक यह पैगाम पहुंचा दिया। और जो यहां मौजूद हैं वोह जो यहां नही है उन तक यह पैगाम पहुंचा दे ।

आपने कहा कि ज़माना जाहलियत की तमाम रसूमात मेरे पैरो तले।
अब जरा हम आशिक रसूल अपने ऊपर गौर करे कि हमने अपने प्यारे नबी की मोहब्बत में, अकीदत मे और इत्तबा में कितनी रासूमत को छोड़ा है और कितनी सुन्नतों पर अमल किया है।

यह रब्बीउल अव्वल का महीना हमारे लिए महास्बे का, इज्तेनाब का और अमल का महीना है जिसमे हमे अपनी आने वाली जिंदगी का रुख बदलना है। इस सोच के साथ शायद हम अपने आशिक रसूल होने का हक अदा कर सकते हैं।

“कुरान करीम में अल्लाह ताला का इरशाद है कि ऐ ईमान वालो वोह बात क्यों कहते हो जो तुम करते नही और यह अल्लाह के यहां बड़ी बैजारी की बात है।”
गैर करें की हमारे कौलो अमल में कितना फ़र्क है।

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