आगरा में जैसे ही सैंपल लेना कम हुआ, वैसे ही नए मरीज मिलना कम हो गया। सवाल उठ रहा है कि सैंपल कम क्यों लिए जा रहे हैं? लखनऊ से आई टीम के वापस जाते ही यह कमी क्यों आई? इतना ही नहीं, छह घंटे में होने वाली कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग व सैंपलिंग अब 18 घंटे में हो रही है।
पूर्व मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. एके कुलश्रेष्ठ ने बताया कि पिछले 12 दिनों में सैंपलिंग प्रक्रिया में आए बदलाव से संक्रमण की जमीनी हकीकत पता नहीं चल रही। जितना ज्यादा सैंपल साइज बड़ा होगा, उतने ज्यादा केस मिलेंगे।
ये है सवाल
- जब सैंपलिंग ही नहीं होगी, तो पॉजिटिव केस कहां से मिलेंगे ?
- जब लैब ज्यादा जांच कर सकती हैं तो सैंपल कम क्यों लिए जा रहे हैं?
- दो निजी लैब में जांच बंद कराई तो उनकी जगह दूसरी में शुरू क्यों नहीं कराई ?
350 की क्षमता, जांच 200 से कम
जिले में एसएन मेडिकल कॉलेज व जालमा कुष्ठ रोग संस्थान में 350 सैंपल रोजाना जांच करने की क्षमता है, फिर भी औसतन हर दिन 150 से 200 सैंपल लिए जा रहे हैं। ये सैंपल पॉजिटिव कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग और निजी अस्पतालों में भर्ती गर्भवती, सांस, अस्थमा, गुर्दा और हृदय रोगियों के अधिक हैं।
छह घंटे में होनी थी कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग
आगरा के नोडल अधिकारी व प्रमुख सचिव आलोक कुमार ने छह घंटे में पॉजिटिव की कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग व सैंपलिंग कर 24 घंटे में टेस्ट रिपोर्ट उपलब्ध कराने के आदेश दिए, लेकिन अब कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग से सैंपलिंग में 24 से 36 घंटे लग रहे हैं। सैंपल कलेक्शन के लिए एक दिन पहले सूची बनती है, फिर दूसरे दिन सैंपल कलेक्शन हो रहा है।
जिलाधिकारी प्रभु एन सिंह का कहना है कि पहले केस अधिक मिल रहे थे। उनके सभी कॉन्टेक्ट की सैंपलिंग होती थी। ज्यादा केस थे, तो संपर्क में आए लोग ज्यादा थे, इसलिए सैंपल ज्यादा थे।
अब पॉजिटिव केस कम हैं, उनके कॉन्टेक्ट भी कम हुए, इसलिए सैंपलिंग भी कम हुई। अब स्मार्ट सैंपलिंग हो रही है। पॉजिटिव की कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग कर पहले उसका घर सैनिटाइज कराते हैं। 18 घंटे से पहले सैंपलिंग हो जाती है।