एक और मासूम गई पढ़ाई के बोझ तले
डोईवाला क्षेत्र से एक दर्दनाक खबर सामने आई है जिसने समाज और शिक्षा व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है। बोर्ड परीक्षा में फेल होने के कारण एक 16 वर्षीय किशोरी ने ज़हर खा लिया। उसे परिजनों द्वारा तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद वह जिंदगी की जंग हार गई।
मेहनती थी, लेकिन मानसिक तनाव के आगे हार गई
परिजनों ने बताया कि किशोरी पढ़ाई में शुरू से ही मेहनती और अनुशासित थी। वह अच्छे परिणाम की उम्मीद कर रही थी, लेकिन परिणाम आने पर जब उसे असफलता का सामना करना पड़ा, तो वह गहरे मानसिक तनाव में चली गई। फेल होने की खबर मिलने के बाद वह चुपचाप अपने कमरे में चली गई और थोड़ी देर बाद बेहोश अवस्था में मिली।
इलाज में देरी नहीं हुई, लेकिन ज़हर ने काम कर दिया
अस्पताल में डॉक्टरों ने उसे बचाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन ज़हर पहले ही शरीर में फैल चुका था। यह घटना न केवल दुखद है, बल्कि यह सोचने पर मजबूर करती है कि पढ़ाई का दबाव अब बच्चों के जीवन पर भारी पड़ने लगा है।
मानसिक स्वास्थ्य को कब समझेगा समाज?
मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों का मानना है कि आज का शिक्षा तंत्र सिर्फ अंकों और रैंक की दौड़ बनकर रह गया है। असफलता को अपमान समझने की सोच बच्चों को आत्मघाती कदम उठाने पर मजबूर कर रही है। माता-पिता, शिक्षक और समाज को बच्चों की मानसिक स्थिति को समझने और उन्हें भावनात्मक मजबूती देने की सख्त ज़रूरत है।
क्या एक परीक्षा की असफलता जीवन से बड़ी है?
यह सवाल आज हर किसी को झकझोर रहा है। यह सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी है। क्या हम बच्चों को यह नहीं सिखा पाए कि एक परीक्षा ही सब कुछ नहीं होती? क्या हमने उन्हें यह नहीं बताया कि असफलता के बाद भी जीवन में अनेक मौके आते हैं?
रिपोर्टर: अभिजीत शर्मा, देहरादून