उत्तर प्रदेश संस्कृत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का रिजल्ट इन दिनों चर्चा में है…वजह है, चंदौली के इरफान। इरफान ने सभी को पीछे छोड़ते हुए इंटर में पूरे प्रदेश में संस्कृत बोर्ड में टॉप किया है। इरफान जितने ही सामान्य परिवार के हैं उनके सपने उतने ही बड़े हैं। वो संस्कृत में शास्त्री भी करेंगे, फिर पीएचडी भी करेंगे।
इरफान ने जिस संपूर्णानंद संस्कृत विद्यालय से टॉप किया है वहां पिछले 4 सालों में 100 से ज्यादा मुस्लिम लड़के संस्कृत में पढ़ाई कर निकले हैं। इरफान संस्कृत में ही अपना भविष्य बनाने की बात कहते हैं। इरफान के इस सपने में उनके पिता सलाउद्दीन भी पूरी मदद कर रहे हैं। बेटे के टॉप करने से वो बहुत उत्साहित हैं।
वो कहते हैं- “भाषा का कोई धर्म नहीं होता है…फिर संस्कृत तो भारत की प्राचीन भाषा है। इसलिए इसे हर किसी को पढ़ना चाहिए। संस्कृत पढ़ने वालों को भी नौकरी में खूब अवसर मिलते हैं। मेरा बेटा भी संस्कृत से आचार्य और शास्त्री करके शिक्षक बनेगा। मुस्लिम होने के बाद भी संस्कृत पढ़ने में मेरे बेटे के विद्यायल के शिक्षकों ने उसकी खूब मदद की। उसी का नतीजा है कि आज मेरा बेटा पूरे प्रदेश में टॉप कर पाया है।”
ये बातें गर्व से दैनिक भास्कर से इरफान के अब्बू सलाउद्दीन ने कही हैं। इरफान का 4 मई को रिजल्ट आया था। उसको संस्कृत बोर्ड में 82.71% अंक मिले हैं। सामान्य परिवार से आने वाले इरफान के पिता खेती बाड़ी का काम करते हैं।
वहीं मां भी घरों में जाकर काम करती है। इरफान ने आठवीं तक की पढ़ाई उर्दू से की है लेकिन उसका हमेशा से संस्कृत से पढ़ने का मन था। जिसके बाद उसने इंटर की पढ़ाई के लिए संस्कृत स्कूल में एडमिशन लिया।
“इरफान के अब्बू हो गए भावुक
इरफान के टॉप करने के बाद दैनिक भास्कर की टीम उसके गांव दीनदासपुर पहुंची। जहां हमें एक छोटे से घर में इरफान के अब्बू-अम्मी मिले। इरफान का घर कच्चा बना हुआ है। बस थोड़ा सा हिस्सा ईंट का बना हुआ है। घर पर पन्नी तनी हुई है। छत बस थोड़े से ही हिस्से में बनी हुई है। घर पर इरफान नहीं था। वो बेंगलुरु काम करने गया हुआ है।
इरफान के अब्बू को जब हमने बेटे की कामयाबी पर बधाई दी तो वो भावुक हो गए। वहीं इरफान की अम्मी असगरी बानो ने गुड़ खिलाकर हम लोगों का मुंह मीठा करवाया। अम्मी का कहना था, घर पर अभी कुछ अच्छा नहीं है इसलिए गुड़ से ही काम चला लें। अम्मी ने नजरों को बचाते हुए हमसे चाय के लिए पूछा लेकिन हम लोगों ने उनको मना कर दिया।
उसका संस्कृत पढ़ने में मन भी लगता था”
हमने इरफान के अब्बू से बात करना शुरू किया। जिस पर उन्होंने हमें बताया, बेटा संस्कृत का चयन करके खुश था। उसका संस्कृत पढ़ने में मन भी लगता था। आठवीं तक उसने उर्दू से पढ़ाई की। लेकिन उसमें उसके अच्छे नंबर नहीं आए। फिर उसने घर में संस्कृत पढ़ने की बात कही तो हम लोगों को थोड़ा अजीब लगा। हमने उससे बोला, संस्कृत से पढ़कर वो क्या करेगा।
हम लोगों के यहां उर्दू की ज्यादा मान्यता है। उसको कहीं नौकरी भी नहीं मिलेगी। लेकिन बेटा जिद पर अड़ा रहा। आखिरकार उसने अपने मन की और श्री संपूर्णानंद संस्कृत महाविद्यायल, चंदौली में एडमिशन ले लिया। उस स्कूल में हिंदू बच्चे ज्यादा थे। मुस्लिम बच्चे कुछ ही थे लेकिन उसके बाद भी कभी भी मेरे बेटे को वहां पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं हुई।
“घर पर तेज-तेज बोलकर संस्कृत पढ़ता था”
वहां के टीचर भी मेरे बेटे को बहुत मानते थे। वहां उसके दोस्त भी बन गए थे जो हमारे घर भी आया करते थे। इरफान ने बहुत जल्द संस्कृत सीख ली थी। वो यहां घर पर हम लोगों से संस्कृत बोला करता था।
घर पर तेज-तेज बोलकर संस्कृत पढ़ा करता था। बेटे की ये लगन देखकर हम लोगों को भी अच्छा लगता था। मेरा बेटा जैसा बोलता था उसने वैसा करके दिखाया है। अब आगे की पढ़ाई भी मेरा बेटा संस्कृत में ही करेगा और शास्त्री बनेगा।