जमीअत उलमा-ए-हिंद ने फिरोज़पुर झिरका मेवात में आज उन दंगा पीड़ितों के लिए जिनके मकानों को मेवात दंगे के बाद प्रशासन ने यह कहते हुए बल्डोज़ कर दिया था कि यह वन विभाग की भूमि है, उनको पुनर्वास के लिए औपचारिक रूप से ज़मीन ख़रीद ली है, हालांकि लोग 90 साल से उन पहाड़ियों की तलहटी में मकान बनाकर रह रहे थे। जमीअत उलमा-ए-हिंद ने दंगा पीड़ितों में से उन 22 लोगों को चुना जिनके पास न कोई ज़मीन थी और न रहने के लिए मकान। मकान बल्डोज होने के बाद भी यह लोग उसी जगह पर प्लास्टिक आदि लगाकर रह रहे थे। उनके लिए अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना अरशद मदनी ने 2200 गज़ जमीन खरीद कर रजिस्ट्री कराई और एक परिवार को लगभग 90 गज़ का मकान, पानी की टंकी और एक मस्जिद बनाकर देने का अपना वादा पूरा किया। मस्जिद में ऐसे इमाम की व्यवस्था की जाएगी जो उनके बच्चों को प्राथमिक दीनी शिक्षा दे सके। मौलाना मदनी ने आज मेवात में बेघर हुए 22 परिवारों को ज़मीन की रजिस्ट्री के कागजात सपुर्द किए और मकानों के निर्माण के लिए प्रति परिवार एक लाख पचास हज़ार रुपये दिया ताकि पीड़ित लोग अपनी आवश्यकतानुसार मकान बना सकें। उन्होंने प्रभावित क्षेत्रों में राहत और कल्याण कार्यों की समीक्षा की और पीड़ितों से मुलाकात भी की। उल्लेखनीय है कि जमीअत उलमा-ए-हिंद के पदाधिकारी और कार्यकर्ता पहले दिन से प्रभावित क्षेत्रों में पीड़ितों को हर संभव सहायता प्रदान करने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं।
पिछले 13 सितंबर को दंगे के बाद से बेकार हुए इन 200 से अधिक लोगों को जो रेहेड़ी-पटरी लगा कर रोज़ी-रोटी कमा रहे थे, नक़द आर्थिक सहायता प्रदान की थी, क्योंकि दंगे में उनकी सारी पूंजी नष्ट हो चुकी थी, इसलिए मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर उनमें प्रति व्यक्ति बीस हज़ार रुपये के हिसाब से चालीस लाख रुपय बांटे गए थे ताकि वो अपना कारोबार पुनः आरंभ कर सकें। उस समय मौलाना मदनी ने यह घोषणा की थी कि जल्द ही प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वास कार्य भी शुरू कर दिया जाएगा और जिनके घरों को अवैध घोषित कर तोड़ दिया गया है, जमीअत उलमा-ए-हिंद उन्हें नए घर बना कर देगी। मौलाना मदनी ने आज अपनी इसी घोषणा की पूर्ति हेतु घरों के निर्माण के लिए जो 2200 गज़ ज़मीन खरीदी गई, जिस में हर एक परिवार को 90 गज भूखण्ड मकान बनाने के लिए दी गई, आज उसकी रजिस्ट्री के कागज़ात पीड़ितों को सौंपे जिनमें तीन हिंदू परिवार भी शामिल हैं।
मौलाना मदनी ने आज अपनी इसी घोषणा की पूर्ति के लिए घरों के निर्माण हेतु जो 2200 गज़ जमीन खरीदी गई थी उसकी रजिस्ट्री के कागज़ात पीड़ितों को सौंपे और हर एक परिवार को 90 गज़ भूखंड मकान बनाने के लिए दी गई है, उनमें एक हिंदू परिवार भी शामिल है। इस अवसर पर मौलाना मदनी ने कहा कि हम खुदा का आभार प्रकट करते हैं कि सबसे अधिक जरूरतमंद लोगों तक सहायता पहुंचा सके।
उन्होंने यह भी कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद पहले दिन से राहत और कल्याण कार्यों में अग्रणीय रही है। यह काम उसने कभी धर्म के आधार पर नहीं किया बल्कि मानवता के आधार पर किया है और यह सिलसिला अभी भी जारी है। प्राकृतिक आपदा हो या सामाजिक समस्याएं, मुसलमानों के मुद्दे हों या देश के मामले हर कदम पर जमीअत उलमा-ए-हिंद ने मानवता के आधार पर अपनी सेवाएं प्रदान की हैं। भूकंप और बाढ़ जैसी आपदाओं का मामला हो या सांप्रदायिक दंगा पीड़ित हों, निर्दोषों की क़ानूनी लड़ाई हो या असम नागरिकता का मुद्दा हो, सब के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए और सब को समय पर सहायता पहुंचाना, उनका पुनर्वास करना, उनके जख़्मों पर मरहम रखना हमने अपना कर्तव्य समझा है। नूह में भी इस परंपरा को बरकरार रखा जा रहा है और पीड़ितों की धर्म से ऊपर उठकर मदद की जा रही है लेकिन एक बड़ा प्रश्न यह है कि इस दंगे से जो जख़्म लगा है क्या वो भरा जा सकेगा? उन्होंने एक बार फिर कहा कि दंगा होते नहीं कराए जाते हैं और इसके पीछे उन ताक़तों का हाथ होता है जो नफ़रत के आधार पर हिंदुओं और मुसलमानों को एक दूसरे से अलग कर देना चाहती हैं। यह दंगा कोई नया नहीं है, आज़ादी के बाद से देश भर में हज़ारों की संख्या में दंगे हो चुके हैं, मगर निराशाजनक तथ्य यह है कि किसी एक दंगे में भी असली दोषी को सज़ा दिलाने का प्रयत्न नहीं किया गया। मौलाना मदनी ने कहा कि नूह में जो कुछ हुआ योजनाबद्ध था वर्ना एक धर्मिक यात्रा में न हथियार लहराए जाते और न ही उत्तेजक नारे लगते। बहुत से न्यायप्रिय लोगों ने यह प्रश्न उठाया था और पूछा था कि अगर वो एक धर्मिक यात्रा थी तो उसमें हथियार ले जाने और उत्तेजक नारों की जरूरत क्या थी, मगर दुर्भागय से न तो इसकी जांच हुई और न ही ऐसा करने वालों को गिरफ्तार किया गया, अलबत्ता ऐसे लोगों को बड़ी संख्या में गिरफ्तार कर लिया गया जो निर्दोष थे। उन्होंने कहा कि अगर सांप्रदायिक लोग यह समझते हैं कि दंगे से मुसलमानों का नुक़सान होता है तो वो मूर्ख हैं, दंगे से किसी विशेष समुदाय या वर्ग का नहीं बल्कि देश का नुक़सान होता है। दुनिया का हर धर्म मानवता, सहिष्णुता और भाईचारे का संदेश देता है इसलिए जो लोग धर्म का प्रयोग घृणा और हिंसा के लिए करते हैं उन्हें अपने धर्म का सच्चा अनुयायी नहीं कहा जा सकता। उन्होंने अंत में कहा कि इस संवेदनशील मुद्दे पर शासकों को गंभीरता से विचार करना चाहिए मगर दुखद तथ्य यह है कि राजनेता सत्ता के लिए देश और जनता की समस्याओं के बजाय धर्म के आधार पर नफरत की राजनीति कर रहे हैं जो देश के लिए बहुत घातक है। मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि आज़ादी के बाद से 75 वर्षों में सभी राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक रूप से कमज़ोर किया और हमेशा उनको भयभीत और डराने की योजना होती रही है, लेकिन मुसलमान अल्लाह के अतिरिक्त किसी से नहीं डरता।
आज मौलाना मदनी के करकमलों द्वारा कागजात पाकर पीड़ित लोग बहुत भावुक हो गए, उनकी आँखें छलक पढ़ीं और उन्होंने जमीअत उलमा-ए-हिन्द और मौलाना अरशद मदनी को धन्यवाद दिया और कहा कि दंगे के बाद आने वाले तो बहुत आए, दिलासा दिया, मदद का वादा किया और चले गए, मगर मौलाना मदनी ने हमें याद रखा, उन्हों हमारे बच्चों को रहने के लिए आश्रय प्रदान किया।
स्पष्ट रहे कि जमीअत उलमा-ए-हिंद ने नूह मेवात में बुलडोज़र कार्रवाई से पीड़ितों के पुनर्वास, मुआवज़ा और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए 7 अगस्त को ही सुप्रीमकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था और अदालत से सभी राज्यों को निर्देश जारी करने का अनुरोध किया था कि बल्डोज़ की अवैध तोड़फोड़ की कार्रवाई से बचें अन्यथा उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। याचिका में यह भी लिखा है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, गुजरात और अन्य राजयों में पिछले वर्ष बुलडोज़र द्वारा तोड़फोड़ की कार्रवाई की गई थी जिस पर सुप्रीमकोर्ट ने इस्टे लगा दिया था और कड़ी मौखिक टिप्पणी की थी, लेकिन सुप्रीमकोर्ट की ओर से लिखित निर्देशों के अभाव के कारण आज नूह जैसी घटना हुई। कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि वो बुलडोज़र मामले में विचाराधीन याचिकाओं पर जल्द से जल्द सुनवाई करे। उल्लेखनीय है कि जमीअत उलमा-ए-हिन्द 18 अप्रैल 2022 से इसमें फरीक़ है।
मेवात दंगा पीड़ित 20 बेघर परिवारों को जमीयत ने मकान और जमीन के सौंपे कागज !आर्थिक सहायता भी…
