भारत-इजराइल दोस्ती का कर्ज़

फिलस्तीन इस वेहश्याना युद्ध से मानवीय त्रासदी से ग्रसत है आम नागरिकों के ऊपर इसराइली कॉम्बैट फोर्सेज द्वारा एक तरफा जुल्म की नई नई इबारत लिखी जा रही हैं मगर लगभग नौ महीने बाद भी इजराइल को इस युद्ध में कितनी कामयाबी मिली यह विचारणीय है। भारत आज़ादी से आज तक आजाद फिलस्तीन देश का पक्षधर और इसराइल की इस दमनात्मक नीति का विरोधी रहा है। हथियारों की सप्लाई भारत के लिए सामरिक मजबूरी हो सकती हैं मगर देश की नीति के तहत भारत आज भी यू एन ओ में एक आज़ाद फिलस्तीन देश की वकालत करता है।

हथियारों की सप्लाई देने का मतलब यह नहीं है कि इसराइल कायराना तरीक़े से उनका इस्तेमाल बे कसूर आम नागरिकों पर करे यह बात अमेरिका और दूसरे देश जो इसराइल को हथियार दे रहे हैं इजराइल के इस कृत्य पर एतराज कर रहे हैं और भारत को भी यह एतराज करना चाहिए। क्योंकि इजराइल की स्थिति आज भीगी बिल्ली खंबा नोचे की तरह है। वो अपने युद्ध की किसी हदफ़ में कामयाब नही है। वास्तविकता में इतनी ताकत का इस्तेमाल करने के बाद भी इजराइल नाकाम नामुराद है। आर्थिक तौर से टूट चुका है अगर यह देश सामरिक तौर पर मदद न करे तो इजराइल हमास की विचारधारा से हार चुका है। काश यह तमाशा देखने वाले मुस्लिम मुल्क समझ लेते कि जंग खंदक में हक वाले ही कामयाब और कामरान थे तादाद और हथियारों के नशे में जंग नही जीती जाती बल्कि अल्लाह की नुसरत से जंग जीती जाती हैं।

खुर्शीद अहमद
(जनरल सेक्रेटरी, जमीयत उलेमा हिंद, देहरादून)
37, प्रीति एनक्लेव माजरा देहरादून।

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