कैराना। एक ओर सरकार पर्यावरण संरक्षण के नाम पर करोड़ों रुपये की योजनाएँ चला रही है, ‘हरियाली मिशन’ से लेकर ‘पौधारोपण अभियान’ तक, हर साल लाखों पौधे लगाने के दावे हो रहे हैं। वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत ये है कि कैराना क्षेत्र में खुलेआम पेड़ों का कत्लेआम जारी है। दर्जनों अवैध आरा मशीनें बिना किसी लाइसेंस या अनुमति के इस तरह से चल रही हैं मानो जंगल, कानून और शासन – सब इनके अधीन हो।
इन अवैध मशीनों के अड्डे बन चुके हैं। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। वन विभाग की आंखों के सामने खुलेआम हरे-भरे पेड़ काटे जा रहे हैं और विभाग की भूमिका पूरी तरह से मूकदर्शक की बनी हुई है। न कोई छापा, न कोई सीलिंग, न कोई कार्रवाई – मानो विभाग ने इस पूरे अपराध को मौन स्वीकृति दे दी हो।
इन आरा मशीनों के पास न तो वन विभाग से अनुमति है, न ही इनके संचालन का कोई वैध दस्तावेज। फिर भी पूरे इलाके में ये मशीनें इस तरह से गरज रही हैं जैसे कानून को चीरते हुए कोई ‘लकड़ी माफिया साम्राज्य’ खड़ा हो गया हो। सवाल उठता है – जब आम आदमी को एक पेड़ काटने के लिए भी अनुमति लेनी पड़ती है, तो ये मशीनें किसके संरक्षण में जंगल के जंगल साफ कर रही हैं? क्या विभाग की मिलीभगत है? क्या प्रशासन की चुप्पी किसी गहरी सांठगांठ का संकेत है?
सरकार हर वर्ष पौधे लगाने के लिए अलग-अलग योजनाएं लेकर आती है। जगह-जगह गड्ढे खोदे जाते हैं, पौधे लगाए जाते हैं और उनकी देखरेख के लिए स्थानीय लोगों को ज़िम्मेदारी भी दी जाती है। लेकिन जब पूरे इलाके में जंगल साफ किए जा रहे हों, तो पौधे बचाना एक मज़ाक बनकर रह जाता है। पेड़ लगाना और फिर उनसे बड़ा जंगल काट लेना – ये कौन सी विकास नीति है?
इससे न केवल पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है, बल्कि राजस्व की भी भारी हानि हो रही है। इन मशीनों के ज़रिए बेचा जा रहा लाखों का लकड़ी बाजार पूरी तरह ‘ब्लैक’ में चल रहा है। सरकारी खजाने को इससे एक पैसा नहीं मिल रहा। यही नहीं, आसपास के किसानों और आम लोगों के लिए भी यह संकट बनता जा रहा है क्योंकि पेड़ सिर्फ लकड़ी नहीं होते, वो छांव, हवा, बारिश और ज़िंदगी होते हैं।