हम भारतीय फिलस्तीन का दर्द को कैसे बांटे।

बीते दिनों की दो वारदात शायद इंसानियत के ज़मीर को झकजोर देने वाली और ह्यूमन राइट्स की बात करने वाले मुल्कों, संस्थाओं और व्यक्तियों के मुंह पर एक तमाचे की तरह हैं।

क्या हो गया कि जैसे गैरत मर गई हो सत्तर साल के एक बैगैरत इंसान ने एक छह साल के मासूम बच्चे को अमेरिका में छब्बीस बार चाकू से हमला कर शहीद कर दिया और इस घटना में अपने बच्चे को बचाने की कोशिश में उसकी मां भी जख्मी हो गई। वजह फिलस्तीन, अमरीकी प्रेसीडेंट, जो बाइडेन कहते है इस तरह की घृणा की हमारे समाज में कोई जगह नही। मियां तुम्हारे ही समाज में इस्लामोफोबिया के नाम पर यह घृणित मानसिकता पनपी है और यह वारदात उसी का नतीजा है दूसरी वारदात इसराइली आर्मी ने फिलस्तीन के एक अस्पताल पर बॉम्बर्डमेंट कर पांच सौ से अधिक लोगों की हत्या कर दी और झूठ बोलने का यह आलम है कि अपने जुर्म को छिपाने के लिए झूठी दलील और बहाने।

इस लड़ाई से यह तो साफ नजर आ रहा है कि इजराइल इस जंग की आड़ में फिलस्तीन में जनसंहार कर रहा है और गाजा पट्टी पर कब्जा करना चाहता है चूंकि फिलस्तीन उसके मुकाबले में कमज़ोर है इसलिए क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करना, बैतूल मकदिस पर कब्ज़ा करना उसका मक़सद है और यह सब एक दज्जाली निजाम को क़ायम करने के लिऐ किया जा रहा हैं जिसकी पैशगोई हमारे आका मोहम्मद साहब ने चौदह सौ साल से भी पहले की थी कि आने वाले वक्त में फितना दज्जाल सब से बड़ा फितना होगा जिसके पैशवा यहूदी होगें और इसी के कारण यहुदी कौम का सफह हस्ती से खात्मा होगा।


अब इन हालात में सवाल यह पैदा होता है कि हमें क्या करना चाहिए क्योंकि भारत सरकार भी फिलस्तीन के इश्यू पर अपनी पुरानी पॉलिसी पर क़ायम है जैसे कि आधिकारिक बयान आया है

भारतीय समाज में भी इस जनसंहार को लेकर बटवारा सा हो गया है मुसलमान उनके लिए दुआ कर रहें है और एक गुट ज़ालिम के लिए गंगा आरती। भारत की आज़ादी के लिए जान देने वालों वाले क्रांतिकारियों को हम शहीद कहते हैं और इसमें हिंदू मुसलमान सब शामिल थे और फिलस्तीन की आज़ादी के स्वतंत्रता संग्राम को भी हमने उसी नजरये से देखना चाहिए फिलस्तीन की आज़ादी के लिऐ शहीद होने वाले भी शहीद हैं ना कि आतंकवादी।

यह कौनसे इंसाफ की तराजू है कि फिलस्तीन पर इजराइल के गैर कानूनी कब्जे को हटाने के लिए यू एन ओ में सौ से अधिक करार दात पास की है जिस पर आज तक कोई अमल नहीं हुआ और इसराइल गैर कानूनी तौर से फिलस्तीन, सीरिया, जॉर्डन के जमीन वा बैतूल मकदिस पर कब्ज़ा जमाए हुए है और सारी दुनिया बे बस देख रही है मगर यहुदी कर्ज़ की वजह से फिलस्तीन में मासूमों, औरतों, बजुर्गो और निहत्तो का जनसंहार बस देख रही हैं ज़ालिम के ज़ुल्म को रोकने की बजाए मजलूमों को कसूरवार कह रही है। वाह रे दुनिया के इंसाफ करने वालो, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस इन वॉर क्राइम के लिए कब तुम्हारा ज़मीर जागेगा।


हमे इस ना इंसाफी के खिलाफ अपनी आवाज़ हर फोरम में बुलंद करनी चाहिए।दुआ के साथ साथ जो उनके प्रोडक्ट है उनके इस्तेमाल से परहेज़ करना चाहिए।


एंबेसी और दूसरे सामाजिक संस्थानों के द्वारा उनको मानवीय मदद पहुचाने के साथ साथ अगर वीजा मिल सकती है तो जाकर ज़ख्मी लोगो के इलाज में मदद करनी चाहिए।यही हमारी भारतीय परंपरा और संस्कृति है।

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