सहारनपुर
ग्लोकल विश्वविद्यालय,सहारनपुर और इंडीजीनस संस्था के संयुक्त तत्वाधान में माननीय कुलपति प्रोफेसर डॉ. पी.के. भारती जी की प्रेरणा एवं उनके संरक्षण में “एक राष्ट्र” राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: भारतीय ज्ञान परंपरा” शीर्षक से एक व्याख्यान माला का आयोजन किया गया । कार्यक्रम का संयोजन प्रतिकुलपति प्रोफेसर सतीश कुमार शर्मा तथा सह-संयोजन डॉक्टर शोभा त्रिपाठी ने किया।
सहयोगियों में सुश्री आश्रिता दूबे, सुश्री आशा चौधरी और सुश्री सिम्मी रही। इस कार्यक्रम के अंतर्गत भारतीय ज्ञान परंपरा के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और अखंडता पर चर्चा की गई। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री प्रवीर जी,आई आई टी खडगपुर रहे । अन्य प्रमुख वक्ताओं में आचार्य सर्वेश्वर नाथ प्रभाकर, प्रोफेसर अशोक कुमार, प्रोफेसर दिनकर मलिक रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रोफेसर सतीश कुमार शर्मा ने की।
कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन और माता सरस्वती तथा स्वामी विवेकानंद के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुआ।
जिसमें कुलपति , कार्यक्रम अध्यक्ष और अतिथियों के साथ प्रति कुलपति प्रोफेसर पंकज कुमार मिश्रा, प्रतिकुलपति प्रोफेसर जॉन फिन्बे , निदेशक प्रशासन श्री गुरु दयाल सिंह कटियार और छात्र कल्याण संकाय अध्यक्षा श्रीमती स्वर्णिमा सिंह भी शामिल हुए। सरस्वती वंदना के उपरांत माननीय कुलपति ने अतिथियों का सम्मान और स्वागत किया। अपने उद्बोधन में माननीय कुलपति जी ने कहा कि भारत सदैव “वसुधैव कुटुंबकम” की परंपरा का निर्वाह करता रहा है। “अनेकता में एकता’ ही हमारी परंपरागत पहचान है। हमारी सांस्कृतिक परंपरा में स्वीकृति और सामंजस्य सदैव प्रमुखता के साथ रहे है। इस स्वीकृति और सामंजस्य की देन है कि हम विश्व गुरु के रूप में स्थापित हुए। हमारे प्राचीन विश्वविद्यालयों में समस्त विश्व से लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे । आज फिर आवश्यकता है कि हम ज्ञान के विकास के उस पर आकाश पर पहुंचे जहां समस्त विश्व की दृष्टि हमारी ओर हो, इसके लिए हमें नवीन तकनीकियों के साथ अपनी मूल शिक्षा के उस आयाम को भी तलाशना होगा जिसमें अंतरिक्ष से लेकर सामुद्रिकी तक की शिक्षा का प्राविधान था। जिसमें शून्य की खोज, जंतर मंतर जैसी खगोलीय वेधशाला का निर्माण है, अनुशासन और कठिन परिश्रम हमारी पूंजी है जिसके माध्यम से हम पुनः विश्व गुरु के पद पर स्थापित हो सकते हैं । इसके उपरांत मुख्य वित्त अधिकारी ए. पी. सिंह ने भारत माता की वंदना करते हुए स्वरचित कविता पढ़ी।
उपरांत सभी वक्ताओं ने क्रमवार अपने वक्तव्य दिए और भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्स्थापित करने की अवधारणा पर बल दिया। वक्ताओं ने अपने भाषण में भारतीय सांस्कृतिक परंपरा और ज्ञान विज्ञान में भारत के योगदान की चर्चा की। प्राचीन विज्ञान से लेकर आधुनिक चंद्रयान 2 की सफलता का श्रेय उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा की स्वीकृति को ही दिया। मुख्य वक्ता नें ज्ञान के साथ दृष्टिकोण को सकारात्मक रखने और मानवता को स्थापित करने पर विशेष बल दिया । इस अवसर पर वक्ताओं ने स्वामी विवेकानंद एपीजे अब्दुल कलाम जैसी हस्तियों को भी याद किया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर सतीश कुमार शर्मा ने कहा कि आधुनिक ज्ञान विज्ञान के साथ-साथ नवीन कौशल के विकास पर भी हमें बल देना चाहिए।
धन्यवाद ज्ञापित करते प्रतिकुलपति प्रोफेसर पंकज कुमार मिश्रा नें भारतीय ज्ञान परंपरा को पाठ्यक्रम में शामिल करने का सुझाव दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर शोभा त्रिपाठी व सुश्री आश्रिता दुबे ने किया। सहयोगी छात्रों में चंदन पांडे, चिराग,सूरज, अंशु ,नूरआज़म, सोएब तथा अन्य सहयोगी गणों में अरुण कुमार और विपिन कुमार रहे। इस अवसर पर चीफ प्रॉक्टर जमीर- उल – इस्लाम , जनसंपर्क अधिकारी डॉक्टर वाजिद खान, डीन फार्मेसी प्रोफेसर उमेश कुमार, डीन लॉ डॉ0 प्रीतम सिंह पँवार, डीन बिज़नेस डॉ0 विजय कुमार, डीन आर्ट्स डॉ0 वसीम अहमद,सागर कौशिक आदि के साथ अन्य प्रवक्तागण और छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।