पुरुष अभ्यर्थियों का सवाल—जब जिम्मेदारी बराबर, तो मापदंड अलग क्यों?
📢 “एक काम, दो पैमाने” पर बिहार सरकार घिरी सवालों में
पटना। बिहार होमगार्ड भर्ती 2025 एक बार फिर सवालों के घेरे में है। “सम्मान का काम, सम्मान वेतन” का नारा देने वाली बिहार सरकार के सिस्टम पर अब पुरुष अभ्यर्थियों ने सीधा सवाल दागा है—जब काम एक जैसा है, तो शारीरिक परीक्षा के मानदंडों में भेदभाव क्यों? पुरुष अभ्यर्थियों की आपत्ति: दोहरी नीति क्यों?
बिहार सरकार ने महिला अभ्यर्थियों के लिए शारीरिक दक्षता में 800 मीटर की दौड़ 5 मिनट में निर्धारित की है, जबकि पुरुष अभ्यर्थियों को दोगुनी दूरी—1600 मीटर—के लिए मात्र 6 मिनट मिलते हैं। यही नहीं, पुरुषों को सीने की न्यूनतम माप 79 सेमी (बिना फुलाए) देना होता है, जबकि महिलाओं के लिए कोई सीना माप नहीं है।
अभ्यर्थी ने कहा,
“होमगार्ड की ड्यूटी में महिला-पुरुष में कोई फर्क नहीं होता, तो फिर परीक्षा में यह भेदभाव क्यों? समान काम के लिए समान मानदंड होने चाहिए।”महिला अभ्यर्थियों को छूट, पुरुषों को चुनौती महिला अभ्यर्थियों को जहाँ ऊंचाई में 153 सेमी की न्यूनतम सीमा दी गई है, वहीं पुरुषों के लिए यह आंकड़ा औसतन 162: 56 है, हालांकि दौड़ और सीने की माप जैसे शारीरिक मापदंडों में इस तरह की असमानता को लेकर भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठना लाजमी है हालांकि प्रशासनिक स्तर पर महिलाओं के लिए थोड़ी राहत देने का तर्क यह होता है कि महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए शारीरिक मानकों में ढील दी जाती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह ढील “समान कार्य-समान वेतन” और “समान जिम्मेदारी” की भावना के खिलाफ नहीं है?
बिहार होमगार्ड भर्ती प्रक्रिया एक बार फिर उस पुरानी बहस को सामने ला रही है—क्या भर्ती प्रक्रिया में लैंगिक भेदभाव जायज़ है, जब नौकरी में , जिम्मेदारी बराबर हों?
पुरुष अभ्यर्थी अब यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या बिहार सरकार को इस पर पुनर्विचार नहीं करना चाहिए? जब हम समानता की बात करते हैं, तो फिर परीक्षा के मापदंडों में इतनी असमानता क्यों?