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यूपी में 3000 शिक्षकों का भविष्य अधर में ? चुनाव से पहले शासन को रिपोर्ट भेजने के बाद भी….

सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे लगभग तीन हजार शिक्षकों को स्थाई करने का प्रस्ताव शासन के विचाराधीन है। शासन के निर्देश पर उच्च शिक्षा निदेशालय ने चुनाव से पहले ही अपनी रिपोर्ट भेज दी थी। इससे पहले भेजी गई रिपोर्ट को शासन ने अस्पष्ट और अपूर्ण बता दिया था।

शासन स्तर पर हुई कई बैठकों के बाद विनियमितीकरण की यह कवायद शुरू हुई थी। अनुदानित महाविद्यालय-विश्वविद्यालय स्ववित्तपोषित अनुमोदित शिक्षक संघ के 27 जुलाई 2021 के पत्र पर शासन ने उच्च शिक्षा निदेशालय से बिंदुवार रिपोर्ट मांगी थी। निदेशालय ने 28 अक्तूबर 2021 को अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी थी। इस पर 10 दिसंबर 2021 को शासन ने निदेशालय को दोबारा पत्र भेजकर कहा था कि उसकी रिपोर्ट अस्पष्ट एवं अपूर्ण है। प्रदेश के 303 सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों में मौजूदा समय में लगभग तीन हजार शिक्षक कार्यरत हैं, जिनके विनियमतीकरण पर प्रतिमाह 28.95 करोड़ रुपये व्यय भार आएगा।

शासन के अनुसार रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों के विनियमितीकरण का क्या आधार है तथा किन नियमों व पात्रता के तहत विनियमितीकरण किया जाना है?
सूत्रों के अनुसार निदेशालय ने इस पत्र का भी जवाब शासन को भेज दिया है। इस बीच नई सरकार के गठन के बाद शिक्षक संघ के पदाधिकारी फिर सक्रिय हो गए हैं। संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अरुणेश अवस्थी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या व ब्रजेश पाठक से मिलकर अपना मांगपत्र दिया। शिक्षकों का कहना है कि वे लगभग 20 वर्षों से काम कर रहे हैं और यूजीसी की सभी शर्तें पूरी करते हैं। वर्ष 2006 में सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में स्ववित्तपोषित योजना के तहत कार्यरत बीएड के संविदा शिक्षकों के विभाग को अनुदान पर लेते हुए राज्य सरकार ने उनका विनियमितीकरण किया था।

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