बाईस से छब्बीस जनवरी तक, रंगों की महत्व को खूब देखा और महसूस किया…..

हमारे भारत में जितनी विविधिताए है उतने ही रंग है और इन रंगों की महत्व को बाईस जनवरी से छब्बीस जनवरी 2024 तक खूब देखा और महसूस किया गया। बाईस जनवरी को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम और रंग दिया पूरी गली कूचों को केसरी भगवा रंग से और शुरू होगया जश्न, जगह जगह भंडारे, मोसीकी और रक्स फिर चाहे सड़क बंद हो गई हो या आवाजाही ठप, बस एक ही धुन थी जय श्री राम की थाप पर नाचना। मर्द हो या औरतें या बच्चे सब दीवाना वार राम जी को खुश करने की होड़ में सबसे आगे और इस जनून में हो गया मीरा रोड पर हंगामा और फिर बुलडोजर ने भी अपना काम कर तोड़ दी दुकानें और भीड़ ने मीरा रोड के लोगो के कारोबार, जैसे वोह देशवासी नही बल्कि दुश्मन मुल्क के वासी हो। पुलिस से सामने पत्थर चला ती, गाडियों को तोड़ती भीड़ और नेताजी माईक में उस भीड़ को ललकारते हुए, “मीरा रोड के जिहादियों को गोली मारो सालो को” एक और नेत्री धमकी देती हुई कि हमें सिर्फ पांच मिनट चाहिए और बस काम तमाम। राम यात्रा के जलूस को रोकने वाले आरोपियों को तो पुलिस ने अगले दिन गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था मगर भड़की भावना ठंडी नही हुई और फिर टूट गया सामाजिक ताना बाना और बे कसूरों के कारोबार।

रायपुर के सिंहोदा तिल्दा नेवरा थाना अंतर्गत इमाम साहब को असमाजिक तत्वों के द्वारा बड़ी बे रहमी से मारा पीटा गया । वहीं इमाम साहब के ऊपर एफ आई आर भी दर्ज कर लिया गया जबकि मारने वालों खिलाफ़ कोई एफ आई आर दर्ज नहीं की गई और मारने पीटने वालों को राजनीतिक संरक्षणील गया और इंसाफ का गला घुट गया।

इसके अलावा अनगिनत वारदाते जो सुर्खियां न बन सकी ताकि समाज में एक धर्म का वर्चस्व ढिखाया जा सके और सब भगवा हो जाए क्योंकि उनके आदर्शो के राम का रंग भगवा था। किसी को कुछ पता भी है किसी ने कभी राम को देखा भी है। मगर आस्था है कि सोचने समझने की ताकत क्षीण कर देती है। क्या कोई दलील है कि राम जी ने किसी को मजबूर किया कि वह जय श्री राम का नारा लगाए । किस मर्यादा से यह समाज राम के आदर्शो को जोड़ रहा हैं इस पर हमारे तथाकथित राष्ट्रवादी मुस्लिम भी नेता कहते हैं कि हम मदरसों में राम के आदर्शो को पढ़ाएंगे। इनके आदर्शो और राम के आदर्शो में बड़ा फर्क है तो यह क्या पढ़ाएंगे।

इन सबके बीच ऐसा लगता है कि भगवा रंग से भारतीय संविधान भी आहत हो रहा है और संविधान की लोकतांत्रिक मूल भावना पर कुठाराघात हो रहा है इसलिए संविधान बचाओ देश बचाओ, भारत जोड़ो देश बचाओ जैसे आयोजन किए जा रहे है और तिरंगों को फिजाओं में लहराया जा रहा है मानो भगवाधारी और तिरंगाधारी में एक प्रतियोगिता हो रही हैं। क्या हमारा भारत इन आडंबरों से कभी आजाद हो पाएगा। आज अगर हमे 75 वी स्वाधीनता दिवस का श्रेय मिला है तो वह हिंदू, मुसलमानों, सिखों और समाज के सभी वर्गों की कुर्बानी का नतीजा है रंगों का नही। इस समस्त समाज जिसका नाम भारत है उसको वंचित कर, उसको त्रस्त कर अगर भारत में भारत की कल्पना की जाती हैं और राम धुन बजाई जाती हैं तो यह कल्पना मात्र है वास्तविकता से इसका कोई लेना देना नही है समाज डर से नही आपसी सदभाव से आगे बढता है। भारत में पैदा होने वाले और रहने वाले सब मूल निवासी हैं और भारतीय हैं और भारतीय संविधान यह हमें सबको अधिकार और समानता का हक़ देता है इसलिए भारत वासियों को एक सूत्र धार में पिरोए ना कि कपड़े के रंगों में बांट कर उनकी पहचान करे वर्ना हम अपने शहीदों की भारत के लिए आस्थाओं का अपमान कर रहे हैं और वास्तविक आज़ादी से कोसों दूर हैं। वैसे भी हम आज भी विदेशी कर्जों से कहां आज़ाद है हर भारतीय बच्चा कर्ज़ दार पैदा होता है और कर्जदार ही दुनिया से चला जाता है।

वास्तविक आज़ादी तभी प्राप्त हो सकती है जब हम इंसानी गुलामी के बोझ से आज़ाद हो और वह तभी मुमकिन है जब हम अपने पैदा करने वाले रब्ब के आदर्शो को अपने जीवन में सार्थक करे।

आपका,
खुर्शीद अहमद,
37, प्रीति एनक्लेव, माजरा, देहरादून।

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