Farmers Protest: किसान आंदोलन का आज 120 दिन पूरे- 26 मार्च को भारत बंद का ऐलान- 28 को…

नई दिल्ली: कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का आज 120वां दिन है। लेकिन इस गतिरोध का अबतक कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है। एक तरफ जहां किसान अपनी मांगों पर अड़े हैं वहीं सरकार भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। गाजीपुर, टीकरी और सिंघु बॉर्डर पर किसान कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर किसान अड़े हैं, हालांकि उनकी तादाद अब काफी कम हो गई है। 

इन सबके बीच किसान नेता अपने आंदोलन को फिर से तेज करने और धार देने आंदोलनकारी किसान लगातार नई रणनीति पर मंथन कर रहे हैं। इतना ही नहीं अपने साथ ज्यादा से ज्यादा किसानों को जोड़ने के लिए किसान संगठनों के बड़े नेता लगातार पंचायत और महापंचायत कर रहे हैं। धरने पर बैठे किसान संगठनों ने आंदोलन को 4 महीने पूरे होने पर 26 मार्च को भारत बंद की घोषणा की है। शुक्रवार को सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक चलने वाले 12 घंटे के बंद के दौरान किसान कृषि कानूनों का दहन करेंगे। इसके बाद 28 मार्च को किसानों ने होलिका दहन के मौके पर तीनों कृषि कानूनों की कॉपियां जलाने का ऐलान किया है।  

किसान नेताओं का कहना है कि धरना प्रदर्शन को 120 दिन पूरे दिन होने पर शुक्रवार को भारत बंद सुबह 6 बजे शुरू होगा और फिर शाम 6 बजे तक रहेगा। सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे के बीच सभी दुकानें और डेयरी बंद रहेंगी, वहीं, मेडिकल स्टोर्स और जरूरी सेवाओं पर इस बंद का कोई असर नहीं होगा। साथ ही इन लोगों का कहना है कि भारत बंद के दौरान हमारा मकसद केंद्र सरकार को तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए जगाना है। इस दौरान किसी को परेशानी नहीं हो, इसका पूरे ध्यान रखा जाएगा। न तो कोई कंपनी-फैक्टरी बंद कराई जाएगी और न ही सड़क जाम की जाएगी। वाहनों को भी नहीं रोका जाएगा। यह जन आंदोलन है और इसमें लोग स्वेच्छा से आएं भारत में हमारा साथ दें।

गौरतलब है कि पिछले 26 नवंबर से बड़ी तादाद में किसान दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर डटे हैं। लेकिन किसान और सरकार के बीच अबतक इस मसले पर अबतक कोई सहमति नहीं बन पाई है।  कृषि कानूनों पर जारी गतिरोध को दूर करने को लेकर किसानों की सरकार के बीच अबतक 12 दौर की वार्ता हो चुकी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलकर पाया है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर नए कृषि कानूनों को एक से डेढ़ साल तक स्थगित करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी और इन कृषि कानूनों को वापस लेने की अपनी मांग पर अड़े हैं

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