- गाना गाकर हिंदी सिखाने वाला यह देश का सबसे पुराना और अनोखा भाषा स्कूल है
- इस स्कूल में हिंदी के अलावा पंजाबी, उर्दू, संस्कृत और गढ़वाली भाषा भी सिखाई जाती है
लैंडोर,मसूरी.आगे -आगे, पीछे-पीछे, ऊपर-ऊपर, नीचे-नीचे, पास-पास, दूर-दूर…। ये गाना गुनगुनाते कई विदेशी चेहरे आपको उत्तराखंड में मसूरी के पास बसे लैंडोर के भाषा स्कूल में दिख जाएंगे। गाना गाकर हिंदी सिखाने वाला यह देश का सबसे पुराना (लगभग 108 साल) और अनोखा भाषा स्कूल है।14 दिसंबर हिंदी दिवस पर इस गांव से उपमिता वाजपेयी की रिपोर्ट
यहां हर साल 200 विदेशी हिंदी सीखने आते हैं। वैसे तो इस स्कूल में हिंदी के अलावा पंजाबी, उर्दू, संस्कृत और गढ़वाली भाषा भी सिखाई जाती है लेकिन 80-90% हिंदी सीखने वाले ही होते हैं। फिलहाल यहां 17 शिक्षक हैं। लंबे समय से स्कूल में पढ़ा रहे हबीब अहमद उत्तरप्रदेश से हैं। वे
कहते हैं ये स्कूल एक अलग ही संसार है, जहां विदेशी हिंदी, उर्दू, संस्कृत सीखने आते हैं और तीन हफ्ते से तीन महीने तक यहां गुजारते हैं।
स्कूल अंग्रेजों ने मिशनरीज के लिए बनवाया था
शुरुआत में यह स्कूल अंग्रेजों ने मिशनरीज के लिए बनवाया था। अंग्रेजों के जाने के बाद भी कई साल तक सिर्फ मिशनरीज को ही दाखिला दिया जाता था। अब इस स्कूल का संचालन एक बोर्ड करता है। यहां आने वालों में शोधकर्ता, दूतावास में काम करने वाले कर्मचारी, राजदूत और फिल्मी सितारे होते हैं। दाखिला लेने वालों की उम्र 18 से लेकर 90 साल तक है। सबसे ज्यादा हिंदी सीखने वाले अमेरिका से होते हैं। निकोल इन दिनों इंग्लैड से यहां आकर हिंदी सीख रहे हैं। जबकि रांची में रिसर्च कर रही जूलियट पोलेंड से हिंदी सीखने आई हैं।
स्कूल में रिकॉर्डिंग की खास व्यवस्था
हिंदी सिखाने के लिए स्कूल में रिकॉर्डिंग की खास व्यवस्था है। छात्र इसी रिकॉर्डिंग से सीखते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि हम भाषा जितनी ज्यादा सुनते हैं, उतनी ही जल्दी सीखते भी हैं। आम स्कूल पहले लिखना-पढ़ना सिखाते हैं, लेकिन यहां पहले बोलना, फिर व्याकरण और फिर लिखना सिखाया जाता है।
यही नहीं, शिक्षकों ऐसे तरीके ईजाद करने की कोशिश करते हैं, जिससे सीखना उबाऊ न हो। हर दिन 4 घंटे पढ़ाई होती है। हर घंटे की फीस 385 से 653 रुपए तक है।