कितनी सुरक्षित हैं हमारी बेटिया।
देहरादून आईएसबीटी की यह शर्मनाक घटना जो 13 अगस्त तड़के घटित हुई जिसमे एक अबला नाबालिग लड़की को पांच दरिंदो ने हैवानियत का शिकार बनाया मंद बुद्धि और कमज़ोर बच्ची रात के उस पहर बस और बस अड्डे के कर्मचारियों की नीचता की कहानी बयान करती हैं और इस वारदात ने दून की शांत वादी में महिलाओं का सम्मान करने वाले दून वासियों की आत्मा को जरूर झकझोर दिया होगा और यह सोचने पर जरूर मजबूर कर दिया होगा कि हमारी बेटियां क्या बस अड्डे जैसे सार्वजनिक स्थान पर सुरक्षित हैं। नही, नही यह समाज आज भी महिलाओं को सिर्फ एक खिलौना समझता है क्या उस 57 वर्षीय अताताई और उसके जैसे क्रूर राक्षसों को यह शर्म नहीं आई कि यह बच्ची मेरी पोती, बेटी से भी छोटी है अगर बेटी नही भी थी तो ध्योडी की ही लाज रख लेते और बेशर्म पिचाशो कम से कम खौफ ए खुदा कर लेते कि वह हर रात के बाद सुबह का सूरज निकालता हैं और सूरज की रोशनी में तुम्हारे चेहरे की कालिख साफ दिखाई देगी। कुछ तो डरते गुनाह करते हुए।
देहरादून पुलिस ने अपना मान रखते हुए तत्परता से दोषियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उम्मीद है कि भारतीय न्याय संहिता की धाराओं के तहत इन दोषियों को सजा मिलेगी। इनका जुर्म दो गुना है एक तो वह बच्ची मंद बुद्धि बताई जा रही है दूसरे यह मुजरिम उस बच्ची के बाप की तरह संरक्षक के हैसियत रखते थे तो इन्होंने एक पाक रिश्ते का भी अपमान किया है इसलिए इनके लिए भारतीय न्याय संहिता की धाराओं के अनुसार आजीवन कारावास और मौत की सजा भी थोड़ी है क्योंकि इन्होंने दून के शांति प्रिय समाज को कलंकित किया है। देहरादून पुलिस को इन पिचाशों को सख्त से सख्त सजा दिलाने के लिए कोशिश करनी चाहिए ऐसा न हो कि यह मुजरिम सिफारिशों के जरिए बाहर आकर फिर समाज को दूषित कर सकें।
साथ ही यह भी तथ्य ध्यान रखने योग्य है कि इनके लिए सजा ऐसी हो जो नजीर बन क्योंकि ऐसे मुद्दों पर सरकार का दोहरा रवैया नजर आता है जब ऐसी घटना किसी मुस्लिम समुदाय के युवक के द्वारा की जाती है तो तुरंत सरकार है बुलडोजर लेकर चली जाती हैं अब देखना यह होगा कि इस घटना पर सरकार का बुलडोजर गरजता है या अपराधियों का अलग समुदाय से होना बुलडोजर को खामोश कर देता है