मदरसों का बदलता स्वरूप और चुनौतियां!

नई शिक्षा नीति को पढ़नें और समझने से यह बात साफ है कि मदरसे की तालीम की इसमें कोई जगह नही है तो क्या आने वाले समय में यह मदरसे बंद हो जाएंगे या इनको स्कूलों में बदल दिया जाएगा। सरकार की मंशा भी शायद यही है और मदरसे की प्रबंधक कमेटी ने भी इस मंशा को भांपते हुए मदरसा तालीम के साथ मॉडर्न एजुकेशन के नाम पर स्कूल की तालीम भी शुरू कर दी है और दोनो कश्तियों में सवार होने की भरपूर कोशिश की जा रही है और मदरसे वाले बड़े गर्व भाव से कहते हैं कि हम मदरसे के बच्चो को हिंदी, अंग्रेजी, गणित और साइंस सी बी एस सी बोर्ड या एन सी आर टी के मुताबिक पढ़ाते हैं। शायद इस बात से सरकार खुश हो जाए और तमाम सरकारी अनुदान और योजनाओ का लाभ मदरसे वाले को मिल जाए मगर क्या मदरसों से होने वाली दीनी ईशाअत जिसके नाम सारे मदरसों में चंदा जमा किया जाता हैं उसका हक पूरा हो सकेगा।

भारत संविधान की धारा 29A वा 30A के तहत अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण वा अधिकार इस प्रकार है।
(29 1) भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग में निवास करने वाले नागरिकों के किसी वर्ग को, जिसकी अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे संरक्षित संरक्षित रखने का अधिकार होगा।
(30 A) अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार
(1) सभी अल्पसंख्यकों को, चाहे वे धर्म या भाषा पर आधारित हों, अपनी पसंद की शैक्षणिक संस्थाएँ स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार होगा।

अब इन दोनों संवैधानिक अधिकारो के दृष्टिगत क्या मुस्लिम अल्प संख्यक समाज को सिर्फ दीनी तालीम के लिए और इशाअत दीन के लिए अपनी स्वेच्छा और अपनी सामाजिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए क्या भारतीय संविधान ने आधिकार नही दिया हुआ है जिसके तहत मदरसों में उनके सिर्फ 3 से 4 % बच्चे पढ़ते हैं क्या यह अधिकार संविधान के विपरीत हैं।

अब नए परिपेक्ष में मुस्लिम समाज भी मॉडर्न एजुकेशन के नाम पर अपने इस एकाधिकार को छोड़ने पर तैयार और मजबूर हैं और मदरसे वाले दोनो पतवार चला रहा है। एक तरफ वर्षो से चल रही चंदा प्रथा जिससे सारे मदरसे चलते हैं को छोड़ना नहीं चाहते और दूसरी तरफ सरकारी योजनाओं का भरपूर आनंद लेना चाहते है और दीनी तालीम को स्कूल की तालीम के साथ मर्ज करना चाहते हैं जो सरकार और नई शिक्षा नीति का अभिप्राय है तो मदरसे वालों को भी यह समझना जरूरी है कि मदरसों का कयाम सिर्फ़ दीनी तालीम की इशाआत के लिए किया गया था और हमारे असलाफ़ ने इसके लिए बहुत तज़किया और तकलीफे उठाई है और मदरसों का निज़ाम किसी के हाथो में नही दिया जबकि सरकारों ने इसकी बहुत कोशिश की और टाट पर बिठा कर आफताब मेहताब बना दिए।

हकीकतन मुस्लिम समाज ने भी जो आपकी मदद की और आपको उन इदारे की शक्ल में जो अमानत दी उसके आप मालिक नही हो बल्कि मदरसे और निज़ाम के मुहाफिज हो इसमें रद्दोबदल करने से मदरसों का मकसद फौत हो जाएगा। दीन की इशाअत के लिए गरीब मुस्लिम परिवारों ने भी अपनी जरूरतों को दर किनार कर आपकी मदद की हैं अब आपकी जिम्मेदारी हैं कि मदरसों के वजूद और मकसद को बरकरार रखें वरना आखिरत में जवाबदेह होंगे।

खुर्शीद अहमद

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