बुलडोजर से किसी का घर का घर ना टूटें निकाय चुनावों में एक मुद्दा।

निकाय चुनावों की रण भैरी बज रही हैं इसमें जनता को क्या क्या मुद्दे उठाए जाने चाहिए और जनता को क्या करना चाहिए। संक्षिप्त में थोड़ा सा हमारा विचार और बाकी आपका फैसला।

उत्तराखंड में बड़ी इंतेज़ार के बाद निकाय चुनाव हो रहे हैं और स्थानीय स्तर पर फिर उम्मीदों की बयार है हर उम्मीदवार वादा कर रहा है कि अगर वह कामयाब हो गया और लोगों ने उसको चुन लिया तो आसमान से तारे तोड़ने की कोशिश करेगा। क्या पिछले चौबीस सालों से यही आश्वासन चाहे पार्लियामेंट का चुनाव हो, चाहे विधान सभा का चुनाव हो और चाहे लोकल बॉडीज का चुनाव हो यही सब सुनते आ रहे हैं और वादे पर वादा। इन सब चुनाव में साठ से सत्तर प्रतिशत के आस पास चुनाव हर बार होता है तो तीस से लेकर चालीस प्रतिशत जनता किन्हीं कारणों से वोट ही नहीं देती है क्या यह लोकतंत्र का मजाक नहीं है कि अपना प्रतिनिधि जिसको चुनने का रहे हो उसको सौ में सिर्फ साठ ही लोग चुनते हैं और फिर तुम्हारा वोट दस जगह बंट जाता है इसलिए तुम्हारे प्रति तुम्हारे प्रतिनिधि की निष्ठा भी बंट जाती हैं और फिर पांच साल वह बेलगाम घोड़े की तरह अपने स्वार्थ पूरे करता है और अपनी बंटी हुई श्रद्धा में कुछ आपके लिए भी कल्याणकारी कार्य कर नालियों बनवा देता है या साफ करा देता हैं। बेचारा गरीब जो झुग्गी बस्तियों में नदी नाले किनारे रहता है और मेहनत मजदूरी कर अपना कुछ पक्का कच्चा घर बना लेता है और इन चुनाव में लाइन लगा लगा अपने उम्मीदवारों को वोट देता हैं वह इस आश्वासन से जीता है कि नेता जी उसके कल्याण के लिए तत्पर रहेंगे। मगर जब बुलडोजर चलता है तो सब गायब। गरीब रह जाता हैं और उसका टूटा हुआ सपना। इसकी वजह यह है कि कोई नेता नहीं चाहता कि असुरक्षा के तलवार गरीब के सर से हटे। कोई कहता है कि हमने तुम्हारी बस्ती बसा दी कोई कहता हे हमने तुम्हारी बस्ती टूटने से बचा दी मगर इन सब की सरकारों की कोर्ट में जाकर बोलती कुछ और हो जाती हैं इसलिए आज चौबीस साल बाद भी इन गरीबों की बस्तियों का नियमितीकरण नहीं हुआ। अब न सरकार द्वारा दिया गया बिजली का कनेक्शन काम आ रहा है ना पानी का, ना बनी हुई सड़क, ना स्कूल, ना स्वास्थ्य केंद्र, ना मस्जिद, ना मंदिर, कोर्ट ने कह दिया यह बस्तियां पर्यावरण को, नदियों के प्रवाह को दूषित कर रही हैं इसलिए इनको हटाओ, नदी में एलिवेटेड रोड बनाकर जब गाड़ियां दौड़ेंगी तो इकोलॉजी खराब नहीं होगी। झुग्गी बस्ती के अलावा शहर की आबो हवा की ए क्यू आई भी प्रदूषित है जहां पर धन्ना सेठ रहते हैं तो इनकी फर्राटा भर्ती गाड़ियां भी तो प्रदूषण के मुख्य कारण हैं इनकी फैक्ट्रियों से प्रदूषित रिसाव किया जाता है इनके द्वारा हजारों टन कचरा रोज़ाना बाहर फेंका जा रहा हैं इनके द्वारा कार्बन एमिशन लेवल बहुत ज्यादा है जिसके कारण आबो हवा गंदी हो रही हैं इनके पास संसाधन हैं कि अच्छी स्वास्थ्य सेवा, अच्छी शिक्षा और प्लांड हाउस इनको मिले। बहुत अच्छी बात है इन के एयर कंडीशन घरों से, फैक्ट्रियों से, कारोबार से, गाड़ियों से कार्बन एमिशन बढ़े मगर प्रदूषण के नाम पर बस्तियों वालों के घर टूटे। अपने वोट की ताकत को पहचाने।

एक तो सभी को सौ प्रतिशत वोटिंग करनी चाहिए और ऐसे प्रतिनिधि चुनने चाहिए जो कोर्ट में जाकर, सरकार में बैठ कर आपके हितों का भी ध्यान रख सके। इस बार नाली, सड़क से ऊपर हिन्दू मुसलमान ना होकर बस्तियों का नियमितीकरण, पुर्नवास और समग्र विकास का चुनाव का मुद्दा होना चाहिए। और जो भी इनको वास्तव में अमली तौर से पूरा कर सके उसको जनता को वोट देना चाहिए।

बस्ती वाले भाइयों बहनों सचेत। आपको अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी।

खुर्शीद अहमद सिद्दीकी,
37, प्रीति एनक्लेव माजरा देहरादून उत्तराखंड।

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