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अकीदो और आस्थाओं पर ब्रज पात, हिन्दू धर्म की यह मान्यता….

हिन्दू धर्म की यह मान्यता है कि राम विष्णुजी के अवतार हैं यानि उनका ही एक रूप है जो हिंदू धर्म में अराध्य है और आदि काल से अन्त काल तक यही मान्यता है। दूसरी मान्यता बाईस जनवरी को राम मंदिर का उद्घाटन होने के मौक़े पर शंकराचार्य जी ने बताया की राम का मंदिर अभी पूरा नहीं बना है धर्मशास्त्र के अनुसार मंदिर देवता का शरीर होता है जब शरीर ही पूरा नहीं शीश और कैश ही नही बने तो प्राण प्रतिष्ठा कैसे की जा सकती है। तीसरी मान्यता कि रामजी राजा दशरथ के पुत्र थे और उनकी माता का नाम कौशल्या था जो अयोध्या में पैदा हुए राजा जनक की पुत्री सीता से विवाह किया और उनकी औलाद हुई दुनिया की जिंदगी गुजारने के पश्चात परलोक सिधार गए। इसके अलावा भी कुछ मान्यताएं हो सकती है मगर यह बात स्पष्ट है कि हिंदू धर्म में राम को ईष्ट, विष्णु का अवतार और भगवान मानकर पूजा की जाती हैं। अब अगर किसी दलील से कोई यह कहे या साबित करने की कोशिश करे की ना ऊजू बिल्लाह राम एक नबी थे या इमाम थे तो यह दोनों धर्मो की मान्यताओं के विरुद्ध है और एक तरह से आस्थाओं पर ब्रज पात की तरह है।

इस्लाम की मान्यताओं के अनुसार अल्लाह का कोई अवतार नही है वो अकेला वाहदहु ला शरीक है ना उसकी कोई आकृति है और न कोई रूप है। ना उसको किसी ने जना (पैदा किया है) और ना उससे कोई जना (औलाद होना) गया। अल्लाह इन सब बातों से पाक हैं और सिर्फ अल्लाह ही मुसलमानों का अराध्य और इबादत के काबिल है उसके अलावा और कोई इबादत के काबिल नही है सब इंसान, जिन्नात, फ़रिश्ते और जो कुछ आसमानों और जमीनों या उसके बीच में है उसकी पैदा करदा मखलूक है। यह मखलूक (जिसको पैदा किया गया) और खालिक (पैदा करने वाला) का फ़र्क और इस्लामी मान्यता है। अल्लाह ने सब नाबियो को दुनिया में पैदा किया और तमाम कोमो के लोगो की हिदायत के लिए मबूस फरमाया ताकि इंसान अपने माबूद की पहचान करे और सिर्फ उसकी इबादत करें। सब नाबिओ ने एक पैगाम दिया कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के काबिल नही और मैं अल्लाह का नबी हुं मेरी बात मान लो।

दोनों धर्मो की मान्यता अलग अलग है इनको एक रूप दिखाने की कोशिश दोनो धर्मो का अपमान और कुठाराघात है। इस्लाम में सिर्फ एक अल्लाह की इबादत और अल्लाह और उसके रसूल का अनुसरण करने का हुक्म है जिसमे शिर्क की कोई गुंजाइश नहीं है जब कि हिंदू धर्म में त्रिलोक के रचयिता ब्रह्मा, विष्णु, महेश वा तैतीस करोड़ देवी देवता की उपासना और पूजा की जाती हैं यह मान्यताएं एक दूसरे से भिन्न, अलग अलग है।

आज के युग में धर्म की व्याख्या नित नए तरीकों से करने की कोशिश की जा रही है और इंसानियत की दुहाई दी जा रही है। जबकि यह बात स्पष्ट और साफ़ है कि तमाम कायनात को पैदा करने वाला एक है और वो ही इबादत के लायक है अब अगर हम खुली दलीलों के बाद भी अपने खालिक और मालिक को नही पहचानते और उन आदर्शो पर नही चलते तो हम इंसान कहलाने के हकदार कहां है फिर तो हमारी मर्जी है कि जो चाहे कहें और माने । यह सरासर बगावत और गुमराही हैं। मगर रोज़ाना जिंदगी का एक दिन कम हो रहा है और फिर उसी मालिक और खालिक के रू बरु खड़ा होकर हिसाब देना है कि दुनिया की जिंदगी में अपने मालिक और खालिक की फर्माबरदारी की या ना फरमानी। यह फैसला और हिसाब होना तय है और कोई इससे नही बच सकता।

आपका,
खुर्शीद अहमद,
37, प्रीति एनक्लेव, माजरा, देहरादून।

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